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________________ भगवती सूत्रे २०४ महानुभागः, महायशाः, महाबलः, महासौख्य:- महन् मुखमेव सौख्यं यस्य स महासौख्यो वर्तते इति । ' से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावासमसहस्ताणं जाव विहरइ' स खलु शक्रस्तत्र द्वात्रिंशतेा विमानावासगत सहस्राणाम् यावद - चतुर शीतेः सामानिकसाहस्रीणाम् त्रयस्त्रिंशता त्रयस्त्रिंशकानाम्, अष्टानाम् अग्र महिषीणाम्, यावत् अन्येषां च बहूनां देवानां च देवीनां च आधिपत्यं यावत्पौरपत्यम्, स्वामित्वम् भर्तुत्वम् कारयन्, पारयन् विति-निष्ठति । तदुपसंहरना एवं महिडिए, जाव एवं महासे क्खे सके देविदे देवराया' एवं पूर्वोक्तवर्णितरीत्या महर्द्धिको यावत्-महाद्युतिकः, महानु मागः महायशाः, महाबलः, एवं महासौख्यः खलु शक्रो देवेन्द्रो देवराजो वर्तते इति । अन्ते गौतमा भगवद्देवराज शक्र बहुत बड़ी ऋद्धिवाला हे, यावत् बहुत बड़े सुखवाला है। यहां यावत् पद से महाद्युतिकः, महानुभाग, महायशाः, महाबलः" इस पाठ का संग्रह हुआ है । 'सेणं' तत्थ बत्तीमाए विमाणावाससयसहस्सा णं जाव विहरह' वह शक्र वहां पर बत्तीस लाख विमानों का, चौरासी हजार सामानिक देवों का, ३३ त्रयस्त्रिंशक देवों का, आठ अग्रमहिपियों का यावत् - अन्य और भी देव देवियों का आधिपत्य, पौरपत्य, स्वामित्व एवं भर्तृत्व करवाता हुआ पलवाना हुआ आनन्द के साथ अपना समय व्यतीत करता रहता है । 'एवं महिडिए जान एवं महासाखे सके देविदे देवराया' इस प्रकार पूर्वोक्त वर्णित रीति के अनुसार शक्र बडी भारी ऋद्धिवाला, घडी भारी द्युतिवाला, महाप्रभाववाला, महायशवाला, महाबलवाला, एवं बहुत बडे सुखवाला है । अब महावीर प्रभुना उत्तर - "गोयमा ! " महि ढिए जाव महासाक्खे " देवेन्द्र, देवरान शई घी महान ऋद्धिवाणी, घी भाघतिवाणी, ઘણા જ મહાપ્રભાવવાળા, ઘણા જ મહાયશાળા અને ઘણા જ મહાસુખवाणी हो. " से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावासस्यसहस्साणं जाव विहरइ તે શક્રેન્દ્ર સૌધમ દેવલેાકમાં ૩૨ લાખ વિનાનું, ૮૪ હુંજાર સામાનિક દેવેાનુ, ૩૩ ત્રયઐિશક દેવાનું, આઠ ગ્રમહીષીઓનુ અને બીજા પણ ઘણાં દેવદેવીઓનું આધિપત્ય પૌરપત્ય, સ્વામિત્વ, અને ાત કરતા થકે આનંદપૂર્વક પાતાના સમય વ્યતીત કરે છે. एवं महिइटिर जाव एवं महासे[क्खे सके देविंदे देवराया " हे गौतम ! मा प्रभाशे (७५२ वर्षाच्या अभाएँ]) देवेन्द्र, देवरान शहषी महाऋद्धि, भडाधुति, भहाप्रलाव, भा ખળ, મહાયશ અને મહાસુખથી સ'પન્ન છે. il ܕܕ
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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