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________________ ૯૦ 'भगवती सूत्रे राक्षसेन्द्रस्य कति अग्रमहिष्य : प्रज्ञप्ता : ? इति पृच्छा, भगवानाह - 'अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्या : भीमस्य चतस्रः अग्रमहिष्य : प्रज्ञप्ता :, तंजहा - पउमा १, पउमावई २ कणगा ३ रयणप्पभा४' तद्यथा- पद्मा १ पद्मावती २, कनका ३, रत्नप्रभा ४, च । तत्थणं एगमेगाए, सेसं जहा कालस्स' तत्र खलु चतमृषु अग्रमहिपीषु मध्ये एकैकस्या : अग्रमहिष्या : एकैकं देवीसहस्रं परिवार : प्रज्ञप्तः, शेषं यथा कालस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम्, तथाचंताभ्यश्चतसृभ्योऽग्रमहिषीभ्यः एकैका अग्रमहिषी अन्यत् देवीसहस्रं परिवारं विकुर्वितुं प्रभुः समर्था, एवमेव सपूर्वापरेण चत्वारि देवीसहस्राणि परिवारो भवति, तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्ग उच्यते इत्यादि सबै कालपकरणे तव देवाव से यम् । ' एवं महाभीमस्सवि' एवं पूर्वोक्तरीत्येव महाभीमस्यापि राक्षसेन्द्रस्य कालव देव गई हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'अजो। चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्यो ! राक्षसेन्द्र भीम की अग्रमहिषियां चार कही गई हैं। तं जहा' जो इस प्रकार से हैं- 'उमा, पउमावई, कणगा, रणभा' पद्मा १, पद्मावती २, कनका ३ और रत्नप्रभा ४ 'तत्थ णं एगमेगाए सेसं जहा कालस्स' इन चार अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी का देवी परिवार १-१ हजार का है तथा इन चोर अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी अपनी विकुर्वण शक्ति द्वारा अन्य और भी १-१ हजार देवी परिवार को निष्पन्न कर सकती है । इस तरह भीम का देवी परिवार ४ हजार का कहा गया है । यह नीम का त्रुटि है। इसके आगे का और सब कथन काल प्रकरण में जैसा कहा जा चुका है । वैसा ही है - ऐसा समझना चाहिये. 'एवं महाभीम स्थविरोना प्रश्न - भीमस्स ण भंते! रक्खसिदास पुच्छा' " हे लगवन् ! રાક્ષસેન્દ્ર ભીમને કેટલી અગ્રમહિષીએ કહી છે ? महावीर प्रभुन। उत्तर- " अज्जो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ " मार्यो । राक्षसेन्द्र लीमने यार अश्रमहिषी उडी छे. " तेजहो ' तेमनां नाभे। या प्रमाणे छे-" पउमा, पउमावई, कणगा, रयणप्रभा (३) पद्मा, (२) पद्मावती, (3) अनडा मने (४) रत्नअला. " तत्थण एगमेगाए सेसं जहा कालस्ल " ते પ્રત્યેક અગ્રમહિષીના એક એક હજાર દેવીઓના પરિવાર છે, કારણ કે તે પ્રત્યેક અગ્રસહિષી પેાતાની વૈક્રિયશક્તિથી એક એક હજાર દેવીએનુ` નિર્માણ કરવાને સમય હાય છે. આ રીતે રાક્ષસેન્દ્ર ભીમના ૪૦૦૦ દેવીઓના પરિવાર થાય છે. આ દેવીપરિવારને તેનુ ત્રુટ્રિક કહે છે. ત્યાર પછીનું સમસ્ત કથન પિશાચેન્દ્ર કાળના કથન પ્રમાણે સમજવું,
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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