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________________ ૭૨ भगवतीसूबे मध्ये एकैकस्या देव्याः अवशेष यथा धरणस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम् , तथाच एकैकस्याः अग्रमविष्याः पटू पट् देवीसहस्राणि परिवारः प्रज्ञप्तः, ताम्यश्च पड्भ्योऽग्रमहिपीभ्यः एकैका देवी अन्यानि पढ्, पट्, देवीसहस्राणि परिवार विकुर्वितु प्रभुः, एवमेत्र सपूर्वापरेण पत्रिंशत् देवीसहस्राणि परिवारो भवति, इत्यादि सर्व धरणेन्द्रप्रकरणोक्तरीत्या स्वयगृहनीयम् । स्थविराः पृच्छन्नि- 'भूयाणं दस्स णं भंते ! नागवित्तस्स पुच्छा' हे मदन्त ! भूतानन्दस्य खलु लोकपालाना मध्ये नागवित्तस्य लोकपालस्य कति अग्रमहिन्यः प्रज्ञप्ताः ? इति पृच्छा, भगवा. नाह-'अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसोओ पण्णत्ताओ' हे आर्याः ! भूतानन्द लोकपालस्य नागवित्तस्य चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा-मुणंदा १, सुभद्दा२, सुजाया ३, मुमणा ४,' तघथा-सुनन्दा १, सुभद्रा २, सुजाता३, सुमनाः ४, 'तत्यणं एगदेवी परिवार धरणकी अग्रमहिपियोंका जैसा एक एक हजारका कहा गया है इस प्रकार भूतानन्द की६अग्रमझिषियों का देवी परिवार सव कुल ३६ हजारका हो जाता है। क्योंकि एक २ अग्रमहिषी का देवी परिवार ६-६ हजार का है इत्यादि रूप से इसले संबंध रखने वाला कथन धरणेन्द्र प्रकरण में कही गई रीति के अनुसार स्वतः समझ लेना चाहिये। __ अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं -'भूयाणंदस्स णं भंते! नागवित्तस्ल पुच्छा' हे भदन्त ! भूतानन्द के जो चारलोकपाल कहे गये हैं उनमें जो नागवित्त नामका लोकपाल है उसकी अग्रमहिषियां कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अज्जो चत्तारि अग्गनहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आयो ! इस भूतानन्द के लोकपाल नागवित्त की अग्रमहिषिधां ४ कही गई हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'स्तुणंदा १, सुभद्दा २, નન્દની પ્રત્યેક અગ્રમહિષીને દેવી પરિવાર ૬-૬ હજાર દેવીઓને થાય છે. તેથી તેની છ અગ્રમહિષીઓને ૩૬૦૦૦ દેવીઓનો કુલ પરિવાર થાય છે. આ રીતે ભૂતાનન્દને દેવી પરિવાર ૩૬૦૦૦ દેવીઓના સમૂહ રૂપ હોય છે. ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન ધરણેન્દ્રના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ અહીં પણ સમજી લેવું. स्थविना प्रश-" भूया दरस ण भंते ! नागवित्तरस पुच्छा " सगवन्! ભૂતાનંદના જે ચાર કપાલે છે, તેમાથી નાગવિત્ત નામને જે લોકપાલ છે. તેને કેટલી અગ્રમહિષીઓ છે ? मडावीर प्रभुने। उत्तर-चत्तारि अग्गमहिषीओ पण्णत्ताभो" माये ! सूतानन्हापा नागपित्तने या२ अमहिषामा छ-" तजहा" तमना नाम मा प्रमाणे छ-"सुगंदा, सुभद्दा, सुजाया, सुमणा" (१) सुनही, (२) सुमद्रा,
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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