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________________ १६० भगवती सूत्रे चेन, जाव णो मेहुणवत्तीयं' नवरं चमरापेक्षया मोमरय विशेषम्तु-परिवारो यथा सूर्यास्य, प्रतिपादितस्तथैव प्रतिपत्तव्यः, शेषं तदेव - पूर्वोक्तचसरवदेव यावद - केवलं परिवार्द्धया, कलत्रादिपरिजनपरिचारणामात्रेण, स्त्रीगन्दश्रवणरूप संदर्शनादिरूपपरिचारणवा, किन्तु नो चैव खलु मैथुनप्रत्ययिकम् । स्थविरा पृच्छन्ति - ' चमरस्त णं भंते ! जाव रन्नो जमस्त महारन्नो कइ अग्गनहिसीओ ?' हे भत! चमरस्य खलु यावत् असुरेन्द्रस्य अमुरकुमारराजस्य चतुर्णां लोकपालानां मध्ये द्वितीयम्य यमस्य महाराजस्य कति कियत्यः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? बहुत से असुर कुमारों देव देवियोंसे चारों दिशाओंसे परिशोभित होकर दिव्य भोग भोगों को भोगते हुवे आहत जो नाटय-गीत है उसमें बजाई गई जो तभी उसके तलतालोंसे त्रुटिक (गुंजमान) मेघ के सदृश मृदङ्गों के सुन्दर बजाए गए उच्च तारतर शब्दों से विहार करने के लिये समर्थ हैं ? इस पाठका यहां पर भी संग्रह किया गया है । 'नवरं परिवारो जहा सुरिया भस्स, सेसं तं चेत, जाव णो चेवणं सेहुणवत्तियं' चमर की अपेक्षा सोम की यह विशेषता है - जैसा परिवार सूर्याभदेव का कहा गया है वैसा ही इसका परिवार है. बाकी का और सब कथन पूर्वोक्त जैसा ही है. अर्थात् चमर के जैसा है. वह सोम वहां परिवाररूप ऋद्धि से, परिजन द्वारा परिचारणा मात्र से, स्त्रियों के शब्दश्रवण, उनके रूप दर्शन आदि रूप से भोग भोगने में तो समर्थ है पर उनके साथ मैथुन करने रूप भोग भोगने के लिये समर्थ नहीं है । अथ स्थविर मुनिराज प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'चमरस्त णं भंते! जाव रन्नो जमस्स महारनी कह अग्गमहिसीओ' हे भदन्त ! चमर के लोकपाल जो यम महाराज हैं उनकी कितनी अग्रमहिषियाँ તાત્પર્ય એ છે કે સેામ લેાકપાલ ખીજા અનેક અસુરકુમાર દેવા અને દેવીએ ના સમૂહની સાથે તે સભામાં નાટકો દેખી શકે છે, દિય સંગીત તથા વિવિધ વાજિંત્રાના નાદ સાંભળી શકે છે. આ રીતે તે શબ્દાદિ અવશ્ય સેગવી શકે છે. પરન્તુ તે ત્યાં મૈથુન સેવનરૂપ ભાગભાગેાને ભાગવી શકતા નથી " नवरं परियारो जहा सूरिया भस्स, सेस तं चैव जाव णो चेत्र णं मेहुणवत्तियं" यमरनी अपेक्षा सोभ सोपासना स्थनभां के विशेषता छे. ते भा પ્રમાણે છે-સામલાકપાલના પિરવારનુ વર્ણન સૂર્ય દેવના પરિવારના વન પ્રમાણે સમજવુ. ખાકીનુ' સમસ્ત કથન ચમરના કથન અનુસાર જ ગ્રહણ કરવું. આ કથનના સારાંશ ઉપર આપવામાં આવી ગયા છે. स्थविरे। प्रश्न-" चमरस्स णं भंते ! जाव रन्नो जमस्स महारन्नो कइ अग्गमहिसीओ ?" हे भगवन् ! यभरना सोपास यभ महाराने डेंटली अग्रभ હિષીઓ છે?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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