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________________ GE भगवतीस्त्रे एणं भंते ! देंवे अप्पड्रियस्स देवस्स मज्जमज्जेणं वीइवएज्जा ? ' हे भदन्त ! महर्द्धिकः खलु देवः अल्पद्धि कस्य देवस्य मध्यमध्येन मध्यभागेन व्यतिव्रजेत् ? व्यतिक्रामेत् गन्छन् कि ? भगवानाह-'हंता, वीइवएज्जा? हे गौतम ! हन्त, सत्यम् महद्धिकः खलु देवः अल्पर्द्धिकस्य देवस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् व्यतिक्रामेत् । गौतमः पृच्छति-'से णं भंते ! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू?' हे भदन्त ! स खलु महद्धिको देवः किम् अल्पद्धिकं देवं विमोह्य-मिहिकायन्धकारकरणेन मोहमुत्पाद्य, व्यतिब्रजितुं प्रभुः समर्थः ? कि वा अविमोह्य मोहमनुत्पाध व्यतिबजितुं प्रभुः समर्थों भवति ? भगवानाह- गोयमा ! विमोहेत्ता वि पभू, अविमोहेत्ता वि पभू' हे गौतम ! महद्धिको देवः अल्पदिकं देवं विमोह्यापि मोहनहीं है कि पहिले निकल जावे और बादमें वह उसे मोहित करे।। ___ अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'महिडिए णं भंते । देवे अप्पड्डियस्त देवस्स मज्झ मज्झेण वीइबएज्जा' हे भदन्ती जो देव महद्धिक होता है वह अल्पर्धिक देव के बीचोंबीचसे होकर निकल सकता है क्यो ? इसके उत्तर प्रभु कहते हैं-'हंता, वीइवएज्जा' हां, गौतम निकल सकता है । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से ण भंते ! किं विमोहेत्ता पभू, अविमोहेत्ता पभू' हे भदन्त ! वह महद्धिक देव जो अल्पद्धिक देव के बीचोंबीचले होकर निकल सकता है सो क्या वह उसे पहिले महिकादि के अंधकार करने से विमोहित कर देता है तब निकलता है, या पहिले उसके बीचमें से होकर निकल जाता है वादमें वह उसे विमोहित कर देता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं'गोयमा! विमोहेत्ता वि पभू, अविमोहेत्ता वि पभू' हे गैातम! वह નીકળી જાય અને ત્યાર બાદ તેને વિહિત કરે, એવું બનતું નથી કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પહેલાં તેને વિમોહિત કરવામાં આવે છે અને ત્યાર બાદ જ તેની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-"महढिए णं भंते ! देवे अप्पइढियस्स देवस्स मज्झ मज्झेणं वीइवएना” 8 सपन! अधिर द्विवाण हैशु. १५ द्धिवार દેવની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરે? भावी२ प्रभुने। उत्त२-“हता, वीइवएज्जा" ७, गौतम ! नीजी शछ. गौतम स्वाभानी प्रश्न-" से ण भते ! कि विमोहित्ता पभू, अविमोहेत्ता पभू १" मावन् ! शुत भद्धि ते सपद्धि हुवन विमोडित शन (મેહિકદિને અંધકાર કરીને તેના દ્વારા તેને વિમોહિત કરીને) તેની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે, કે તેને વિહિત કર્યા વિના તેની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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