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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.१० सू.४ अग्न्यरम्भकपुरुषद्वयक्रियावर्णनम् ८३१ कायम् उज्ज्वालयति, एकः पुरुषः अग्निकार्य निर्वापियति, एतयोः खलु भदन्त ! द्वयोः पुरुषयोः कतरः पुरुषः महाकर्मतरश्चैव, महाक्रियतरश्चैव, महास्रवतरश्चैव, महावेदनतरश्चैव ? कतरो वा पुरुषः अल्पकर्मतरश्चैव; यावत् अल्पवेदनतरश्चैव ? । यो वा स पुरुषः अग्निकायम् उज्ज्वलयति. यो वा सपुरुषः अग्निकायम् निर्वापयति, सूत्रार्थ-(दो भंते ! पुरिसा सरिसया सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धिं अगणिकाय समारंभंति) हे भदन्त ! दो पुरुष ऐसे हों कि जिनके यावत् भाण्डपात्रादि उपकरण एकसे हों ये दोनों मिलकर अग्निकायका समारंभ करें (तत्थ णं एगे पुरिसे अगणिकाय उजालेइ, एगे पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ ) इनमें एक पुरुष अग्निकायको प्रकट करे-सलगावे और दूसरा पुरुष जलादि द्वारा उसे बुझावे, तो (एएसि णं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव) हे भदन्त ! इन । दोनोंमें ले कौनसा पुरुष महाकर्मयुक्त होगा ? (महाकिरियतराएचेव, महालवतराएचेव, · महावेयणतराएचेव] महाक्रियावाला होगा, महा आस्रववाला होगा, और महावेदनावाला होगा ? तथा [कयरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराएचेव जाच अप्पवेयणतराए चेव] कौन पुरुष अल्पकर्मवाला होगा, यावत् अल्पवेदनावाला होगा ? क्या (जे वा से पुरिसे अगणिकाय उजालेइ ? जे वा से पुरिसे अगणिकाय सूत्राथ- (दो भंते ! पुरिसा सरिसया जाव सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्न मन्नेणं सद्धिं अगणिकायं समारंभति) 3 Herd! मे पुरुषो सेवा छे । જેમના ભાડ પાત્ર અને ઉપકરણે એકસરખા છે, હવે તે બને મળીને અગ્નિકાયને समान रे छे, (तत्थणं एगे पुरिसे अगणिकायं उज्जालेड, एगे पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ) ते भन्नेमाथी से पुरुष मनियने पलित ४३ छ, अने भन्ने पुरुष ११ माहि तेने मुआवे छे तो (ए ए सिणं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव) हे महन्त ! ते पन्ने पुरुषामान। ध्येपुरुष भ७४भयुत थक्ष, ( महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चेव ?) महाठियात यश, महामासक्युत यं सने मडावनायुत थशे ? तथा (कयरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव, जाच अप्पवेयणतराए चेव ?' ४ २५ २६५४ वाजा, म६५ठियावाणी, म६५ पासवाणे सने २०६५ नावाणी शे (जे वा से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेई, जे वा से पुरिसे अगणिकाय निघावेइ) शु ममि सपना पुरुष भाभि माहिवाको ग.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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