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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. १० म०३ शुभाशुभकर्मफलनिरूपणम् ८१७ दुरूपतया, दुर्गन्धतया, यथा महासवे यावत् भूयो भूयः परिणमति, एवमेव कालोदायिन् ! जीवानां प्राणांतिपातः यावत्-मिथ्यादर्शनशल्यम्, तस्य खलु आपातः भद्रको भवति, ततः पश्चात् विपरिणमत् विपरिणमत् दुरूपतया यावत् भूयो भूयः परिणमति, एवं खलु कालोदायिन् ! जीवानां पापानि कर्माणि आदि व्यञ्जनोंसे युक्त ऐसे भोजनको जो कि विषसे मिला हुआ हो तो (तस्स णं भोयणस्स आवाए भदए भवइ तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे दुरूवत्ताए, दुगंधत्ताए, जहा महासवए जाव भुजोर परिणमइ) उस भोजनका आपात-प्रथम संसर्ग खाते समय में स्वाद तो अच्छा लगता है, पर इसके बाद वही भोजन जव पचने लगता है तब वह खराबरूपमें, दुर्ग धरूपमें जैसा कि महानवमें कहा गया है उसके अनुसार बारंबार परिणामता रहता है (एवामेव कालोदाई) जीवाणं पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, नस्स णं आवाए भदए भवइ तओ पच्छा विपरिणममाणे विपरिणममाणे दुरूवत्ताए जाव भुजोर परिणमइ) इसी प्रकार हे कालोदायिन् ! जीवोंके प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य ये पापकर्म होते हैं। इनका आपात आरंभ कालिक संसर्ग तो शोसन लगता है पर इसके बाद जब ये उदयकालमें प्राप्त होते हैं तब दुरूपरूपमें ये बारंबार परिणमते रहते हैं। सुखरूपमें नहीं परिणमते हैं । (एवं खलु कालोदाई ! શુદ્ધ, ૧૮ પ્રકારનાં દાલ, શાક આદિ વ્ય જનોથી યુકત ભેજનને ખાય છે. પણ मानमा विष भामा मावेलु छ (तस्स णं भोयणस्स आवाए भदए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे दुरूवत्ताए, दुगंधत्ताए, जहा महासवए जान सुज्जोर परिणमई) ते मानन माया1 - प्रयम ससर्ग- माती मतना સ્વાદ તે સારું લાગે છે, પણ ત્યાર બાદ જ્યારે તે ભેજન પચવા માડે છે, ત્યારે તે ખરાબરૂપે, દુર્ગ ધરૂપે, મહાસવમાં જે પ્રમાણે કહ્યું છે તે પ્રમાણે, વાર વાર પરિણમતું २ छ (एवामेव कालोदाई) सहायी! मे प्रमाणे (जीवाणं पाणाइवाए जाव मिच्छादसणमल्ले, तस्स णं आवाए भदए भवइ, तो पच्छा विपरिणममाणे विपरिणममाणे दुरूवनाए जाव सुज्जो सुज्जो परिणमड) वन प्रातिपात થી લઈને મિથાદર્શનશલ્ય પર્યરતના પાપકર્મોને આપાત–પ્રથમ સંસર્ગત સુખદાયક લાગે છે, પણ ત્યાર બાદ જ્યારે તે પાપકર્મો ઉદયમાં આવે છે, ત્યારે તેઓ બરાબરૂપે– ८ म३३ वारवार परिमता २हे -ते पा५४ सुम३५ परिशुभता नथी (एवं खल