SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 836
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८०४ भगवतीमा खल जीवास्तिकाये अरूपिकाये जीवानां पापानि कर्माणि पापफलविपाकसंयुक्तानि क्रियन्ते ? हन्ता क्रियन्ते । अत्र खलु स कालोदायी संबुद्धः, श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवम् अवादीतइच्छामि खलु भदन्त ! युप्माकम् अन्तिके धर्म निशामयितुम् , एवं यथा स्कन्दकस्तथैव प्रत्रजितः, तथैव एकादश अङ्गानि यावत् विहरति ।मु. २।। इणढे समढे कालोदाई) हे कालोदायिन ! यह अर्थ समर्थ नहीं है क्यों कि (एयसि णं जीवत्थिकायसि अरूविकायसि जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जति) जो अरूपिकायरूप जीवास्तिकाय है उसमें ही जीवसंबंधी पापजनक कर्म जोकि पापफलके विपाकसे संयुक्त रहते हैं होते हैं । (एत्थ णं से कालोदाई संयुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदह नमसइ वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी इच्छामि गं भंते ! तुम्भं अंतिय धम्म निसामेत्तए) यहां पर कालोदायी प्रतिवुद्ध हो गया और फिर उसने श्रमण भगवान् महावीरको, वंदना की, नमस्कार किया बन्दना नमस्कार करके फिर उसने प्रभुसे ऐसा कहा-हे भदन्त ! मै आपके पास धर्म सुनना चाहता हूं। (एवं जहा खदिए तहा पब्वइए) इस तरह उसने स्कन्दकी तरह प्रव्रज्या अंगीकार करली (तहेव एकारसअंगाई जाव विहरह) तथा उसी तरहसे उसने ग्यारह अंगोंको पढ लिया । तेने। सहमा हेय छ भ३॥ ? (णो इणढे समढे कालोदाई1) 3 starth ! मेg समी तु नथी, ५२ ३ (एय सिण जीवस्थिकाय सि जीवा ण पावाकम्मा पावफलविवागस जुत्ता कज ति ) ने म३थी. ४ाय३५ वातिय छ, तमान જીવ સંબંધી પાપજનક કમ કે જે પાપફલના વિપાકથી સંયુકત રહે છે, તેને સદ્દભાવ डाय छे. (पत्थण से कालोदाई स बुद्धे-समण भगवं महावीर वंदइ, नमसइ, चंदित्ता नम सित्ता एवं वयासी-इच्छामि ण भंते ! तुभं अतिय धम्म निसामेत्तए) मा प्रभानु प्रतिपाहन सामणीने satarयी प्रतिमुद्ध ४ गयो. ત્યારબાદ તેણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણુ કરી અને નમસ્કાર કર્યો, વંદણ નમસ્કાર કરીને તેણે પ્રભુને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે ભરત! હું આપની પાસે ધર્મનું २५३५ साल माशु थु. (एव जाव खदिए तहा पन्चइए) मा प्रभार हान ते २४-६४नी म दीक्षा २०२ ४३ सीधी. ( तहेव एकारसअंगाई जाव विहरड) भने २४६नी म मनियार मगाना मल्यास श दीधे..
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy