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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ १० सू. १ धर्मास्तिकायादिवर्णनम् ७८९ ५ पट्टओ, वण्णओ' यावत् औपपातिकसूत्र वर्णितः पृथिवी शिलापट्टकः आसीत्, वर्णकः, तस्यापि वर्णनम् औपपातिकवत, 'तस्स णं गुणसिलयस्स arrer अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति' 'तस्य खलु गुणशिलकस्य चैत्यस्य उद्यानस्य अदूरसामन्ते नातिदूरे नातिसमीपे - चैत्यपात्रे इत्यर्थः बहवोsने के अन्ययूथिका:= अन्यतीर्थिकाः प्रतिवसन्ति, 'तं जहा - कालोदाई, सेलोदाई, सेवालाई उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहस्थी, गाहयाई' तद्यथा - कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदयः, नामोदयः, नर्मोदयः, अन्यपालकः, शैलपालकः, शङ्खपालकः, सुहस्ती, गाथापतिश्चति । तणं तेसिं अन्न उत्थियाणं अन्नया कमाइ एगयओ समुवागयाणं सन्नि भद्र चैत्यकी तरहसे जानना चाहिये। 'जाव पुढवीसिलापट्टओ' यावत् औपपातिक सूत्र में वर्णित हुएकी तरह वहां पर एक पृथिवी शिलापट्ट था 'वण्णओ' इसका भी वर्णन औपपातिकमें किया गया है । 'तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति' उसगुणशिलक चैत्यके पास उससे न अधिक दूर और न अधिक पास किन्तु उसके ठीक पार्श्वभाग में समीपमें अन्ययूथिकजन अन्यतीर्थिकजन रहेते थे । 'त जहा' उनके नाम इस प्रकारसे हैं 'कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी, गाहावर्ड' कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्यपालक, शैलपालक, शंखपालक, सुहस्ती और गाथापति, 'तए णं तेसिं अन्न उत्थियो णं अन्नयाकमाई एगयओ समुवागयाणं सन्निविद्वाण' किसी समय स्थानान्तर सिला पट्टओ' त्या ४ पृथ्वीशिसायट्टड हेतु 'वण्णओ' तेनु वागुन पशु औपचाति સૂત્રમા કરેલુ છે ' तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स ' તે ગુરુશિલક મૈત્યથી 6 अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसति' अतिशय दूर पणु नहीं मने तद्दन પાસે પણ નહી એવે સ્થાને અનેક અન્ય યુથિકા - અન્ય તીર્થિકો (અન્ય મતવાદીએ) रहेता हुता, 'त'जहा' तेमना नाम या प्रमाणे हता - ' कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदर, नामुदए, नम्मुदर, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी, गाहावई' असोहाथी, शैलोदायी, शैवासोहायी, उदय, नामोहय, नर्मोहय અન્યપાલક, શૈલપાલક, શ ખપાલક, સુહસ્તી અને ગાયાત तणं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नयाकयाई एगयओ समुवागयाणं सन्निविद्वाण' ध मे सभये 4
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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