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भगवतीमत्रे अन्त =भूमिभागम् अपक्राम्यति गच्छति, 'एग तम त अवक्कमित्ता तुरए निगिण्डइ' एकान्तमन्तम् अपक्रम्य तुरगान् निगृह्णाति, "तुरए निगिण्डित्ता रह ठवेई तुरगान् निगृह्य रथ स्थापयति 'रह ठवेत्ता, रहाओ पच्चोरुहइ' स्थ स्थापयित्वा रथात् प्रत्यवरोहति अवतरति. 'रहाओ पच्चोरुहिता तुरए मोएइ' रथात् प्रत्यवरुह्य अवतीर्थ तुरगान मोचयतिरथात् पृथक् करोति 'तुरए मोएत्ता तुरए विसज्जेइ' तुरगान मोचयित्वा तुरगान् विसर्जयति= स्वस्थाने प्रेपयति 'तुरए विसज्जित्ता दमस थारगं संथरई' तुरगान् विसऱ्या दर्भस स्तारकं संस्तृणाति-विस्तारयति 'संथरित्ता दमस थारगं दुरुह३' सस्तीर्य आस्तीर्य दर्भसंस्तारकम् आरोहति तदुपरि उपविशति, 'दब्भसंथारगं दूरुहिता, पुरत्थाभिमुहे म पलिय कनिमन्ने करयल-जाब कटु एवं बयासी-' दर्भ गये 'पडिनिक्खमित्ता एगंतमतं अवकमइ' विमुख होकर वे किसी एकान्त स्थानमें चले आये 'एगतमंत अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हह' एकान्त स्थानमें आकर उन्होंने अपने घोडोंको खडाकर दिया 'तुरए निगिणिहत्ता २६ ठवेइ' घोडों के खडे होते ही रथ खडा हो गया 'रहं ठवेत्ता रहाओ पचोर हई' रथके खडे हो जाने पर वे उससे नीचे उतर आये 'रहाओ पच्चोरुहित्ता' नीचे उतरकर 'तुरए मोएइ' घोडोंको उन्होंने ढीलदिया रथसे अलग कर दिया तुरए मोएत्ता तुरए विसज्जेइ' और अलग करके उन्हें उनके स्थानपर भिजवा दिया 'तुरए विसजित्ता' घोडोंको यथास्थान भिजवाकर 'दमसंथारगं संथरई' फिर उन नागपौत्र वरुणने दर्भका संथारा बिछाया 'संथरित्ता दम्भसंथारगं दूरुहइ' दर्भका संथारा विछाकर ने उस पर बैठ गये 'दन्भसंथारगं दुरुहित्ता पुरुत्वाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयल जाव कडे एवं बयासी' नाजी गया 'पडिणिकखमित्ता एगंतमंतं अबक्कमड' त्याथी नीजी तमा ४ सान्त यामे यास्या मा०या 'एगंतमंतं अवकमित्ता तुरए निगिण्हई' मन्त त्याने माने तमो याने यालावी. घा, 'तरए निगिहित्ता रह ठवेइ' धाडान थालवता ४ २५ मा २ही गये।. 'रह ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहई' २थ अना २ता । तेमा २५ परथी नाय तरी गयो, 'रहाओ पच्चोरुहिता तुरए मोएइ' २थ उपस्थी नीये तरीन तभणे यासाने. २थथी मलम ४२ टीघा, 'तुरए मोइत्ता तरए विसज्जेई घोडायाने २थथी मग शन छूट। भूपीटीया. 'तुरए विसज्जित्ता' थे न भुत शन 'दम सथारग स थरड' तभी मना सया। मि७०या. संथरित्ता दव्भस थारगं दुरुहा' मना सथा। पिछावान तना ५२ मेसी गया.