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________________ ७०४ भगवतीसूत्रे पोषधोपवासाः, रुष्टाः, परिकुपिताः, समरघातिताः, अनुपशान्ताः, कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गताः, कुत्र उपपन्नाः ? गौतम ! मायो नरक-तिर्यग्योनिकेषु उपपन्नाः ॥ मू० ३ ॥ टीका-'से केणटेणं भंते ! एव बुच्चइ महासिलाकंटए स गामे ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थन कथं तावत् एवमुच्यते-महाशिलाकण्टकः संग्राम: ? तस्य स ग्रामस्य महाशिलाकण्टकं नाम कथं कृतम् ? भगवानाह-'गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे' हे गौतम ! महाशिलाकण्टके खलु निस्सीला, जाव निप्पचक्खाणपोसहोववाला रुटा, परिकुचिया, समरवहिया, अणुवसंता, कालमासे कालं किच्चा, कहिं गया, कहिं उववन्ना ? हे भदन्त ! निःशील यावत् प्रत्याख्यान, पोषधोपवाससे रहित' रुष्ट-क्रोध से युक्त, परिकुपित अतिशय क्रोधसे भरे हुए एवं अनुपशान्त बने हुए वे युद्ध में मारे गये मनुष्य कहां गये ? कहां पर उत्पन्न हुए ? (गोयमा) हे गौतम ! (ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएलु उववन्ना) प्रायः करके वे सब के सब युद्ध में मारे गये मनुष्य नरक और तियञ्चयोनिमें उत्पन्न हुए हैं। टीकार्थ-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ महासिलाकंटए संगामे' हे भदन्त ! उस संग्रोलके महाशिलाकंटक संग्राम' इस प्रकार के नाम करने में हेतु क्या है ? इस बातको जब गौतमने प्रभुसे पूछा तब इसके उत्तरमें प्रभुने उनसे इस बातको प्रकट करनेके लिये सूत्रकार कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'महासिलाकटए णं मणुया निस्सीला, जाव निप्पचक्खाणपोसहोववासा रुढा, परिकुविया, समरचहिया, अणुवसता, कालमासे कालं किच्चा कहिंगया. कहि उववना ?) હે ભદત ! તે શીલરહિત, પ્રત્યાખ્યાન રહિત, પિષધપવાસ રહિત, રેષયુક્ત, અતિશય ક્રોધસંપન્ન અને અનુપશાન્ત બનેલા મનુષ્ય યુદ્ધમાં મરીને કયાં ગયા? કઈ ગતિમાં उत्पन्न यया ? (गोयमा!) गौतम ! (ओसन्न नरगतिरिक्खजोणिएसु उववन्ना) તેઓ બધા સામાન્યત નરકોનિમાં અને તિર્યંચનિમાં ઉત્પન્ન થયા છે. -- गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेवा प्रश्न पूछे - (से केणटेणं भंते ! एक वुच्चड-महासिलाकंटए संगामे ?? 3 महन्त ! ते सामने ॥ ४॥२ મહાશિલાકટય સંગ્રામ' કહેવામાં આવે છે ___गौतम स्वामीना प्रश्न वाम मा५ता भापी२ प्रभु ४९ छ - 'गोयमा! गौतम । 'महासिलाकं टए णं सगामे वद्रमाणे न्यारे भाशिमा संग्राम
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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