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प्रमेवचन्द्रिका टीका श.७ उ. ३ सू. ५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम्
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अण्णम्मि समए निज्जरे ति' अन्यस्मिन् समये वेदयन्ति, अन्यस्मिन् समये निर्जरयन्ति 'अण्णे से वेयणासमए, अण्णे से निज्जरासमए' अन्यः स वेदनासमयः, अन्यः स निर्जरासमयः, 'से तेणद्वेणं जाव-न से वेयणासमए', हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत्-एवमुच्यते यो वेदना समयः न स निर्जरा समय, यो निर्जरासमयः न स वेदनासमयः इत्याशयः । अथ नैरयिकादिजीवमाश्रित्य गौतमः पृच्छति - 'नेरइयाणं भंते! जे वेयणासमए से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए से वेयणासमए ?' हे भदन्त ! नैरयिकाणां यो वेदनासमयः स निर्जरासमयः अथ च यो निर्जरासमयः स वेदनासमयः ?
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निज्जरे ति' इस तरह अन्य समय में वे वेदन करते हैं और अन्य समय में वे निर्जरा करते हैं 'अण्णे से वेयणासमए, अण्णे से निजरा समए' अतः वेदना का वह समय जुदा है और निर्जराका वह समय जुदा है 'से तेणद्वेणं जाव न से वेयणासमए' इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जो वेदनाका समय है वह निर्जराका समय नहीं है और जो निर्जराका समय है वह वेदना का समय नहीं है । अब नैरयिक आदि जीव विशेषको आश्रित करके गौतम ऐसा पूछते हैं कि- 'नेरइयाणं भंते ! जे वेयणासमए से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए से वेणासमए' हे भदन्त ! नारक जीवोंका जो वेदनाका समय है क्या वही निर्जराका समय है और जो निर्जराका समय है क्या वही वेदना का समय है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं 'अण्णम्म समए वेदेति, अण्णम्मि समए निज्जरे ति' જ્યારે તેઓ તેનુ વેદન કરે છે, તેના કરતાં અન્ય સમયે તે 'अण्णे से वेयणा समए, अण्णे से निज्जरासमए' वेहनानो ने समय हाय है તે પણ જુદા જ હેાય છે, અને નિરાના જે સમય હોય છે તે પણ જુદા જ હોય છે से तेणट्टेण जात्र न से वेयणासमए' हे गौतम! तेरो में धुंधु छे } જે વેદનાને સમય હાય છે, તે નિરાના સમય હાતેા નથી અને જે નિર્જરાના સમય હાય છે તે વેદનાને સમય હતેા નથી. હવે નારક આદિ જીવવિશેષને અનુલક્ષીને गौतम स्वामी या प्रभा अभ पूछे छे - 'नेरइयार्ण भंते ! जे वेयणा समए से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए से वेयणासमए ?” हे लहन्त ! ना२४ भवानी વેદનાના જે સમય છે,એ જ શું તેમની નિરાના સય છે, અને જે નિરાના સમય છે, એ જ શુ' વેદનાનો સમય છે ?
मा रीते मे समये તેની નિર્જરા કરે છે