________________
'प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. २ सू. ५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम्
न तद् वेदयिष्यन्ति । ' एवं नेरइया वि, ज्ञान- वेमाणिया' एवं समुच्चयजीववेदनादिवदेव नैरयिका अपि यावत् भवनयतिमारभ्य वैमानिकान्ताः यद् वेदयिष्यन्ति न तद् निर्जरयिष्यन्ति यद् निर्ज रयिष्यन्ति न तद् वेदयिष्यन्ति गौतमः पृच्छति' से गूण भंते! जे देयणा समए से निज्जरासमए, जे णिज्जरा समए से वेणा समए ?' हे सदन्त ! अथ नूनं निश्चयेन किं यो वेदना समयः स एव निर्ज ससमयः, यो निर्जरासमयः स एव वेदनासमयः ? भगवानाह-'णो इणट्टे समट्ठे' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः, नो वेदनासमय और जिस कर्म की वे निर्जरा करेंगे उसी कर्मका वे वेदन करेंगे। 'एवं नेरहया विजाव चेमाणिया' हे गौतम! इसी तरह से समुचय जीवके वेदनादि की तरह से ही नैरयिक भी यावत् भवनपति से लेकर वैमानिक देवतक ऐसा ही जानना चाहिये कि जिस कर्म का वेदन करेगे उसी कर्म की वे निर्जरा नहीं करेंगे तथा जिस कर्म की वे निर्जरा करेंगे उसी कर्मका वे वेदन नहीं करेंगे ।
अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि - ' से पूर्ण भंते ! जे वेणासमए से णिजरा समए जे णिज्जरासमए से वेयणासमए' हे भदन्त ! क्या वह निश्चित है कि जो वेदनाका समय है, वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है क्या वही वेदनाका समय है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि-' णो इट्टे सम' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् जो वेदनाका તેઓ જે કમની નિરા કરશે એ જ ક્રમનું તેમના દ્વારા વેદન કરાશે નહીં 'एवं णेरड्या विज्ञान वेमाणिया' समुस्यय वना हे. अथन नाश्ता विषयभां પણ સમજવું અને ભવનપતિથી લઈને વૈમાનિકા સુધીના દેવાના વિષયમાં પણ એવું જ યન સમજવું એટલે કે નારક્ષી લઈને વમાનિક પન્તના જીવો જે કનુ વેદન કરશે, એ જ કની નિર્જરા નહીં કરે, અને તે જે કર્માંની નિર્જરા કરશે, એ જ કનું
वहन नहीं रे.
ووبار
देव गौतम स्वामी महावीर अभुने सेवा अश्न पूछे छे से शृणं भंते ! जे वेणासमए से णिज्जरासमए जे णिज्जरा समए से वेयणास भए ?" डे Mara ! થ્રુ એ વાત સાચી છે કે જે વેદનાના સમય છે, એ જ નિરાના સમય છે, અને જે નિરાના સમય છે, એ જ વેદનના સમય છે ?
तेन। उत्तर आयता महावीर प्रभु ४ - 'गोयमा ! णो इण्डे समडे' હે ગૌતમ એત્રાત સાચી નથી. એટલે કે જે વેદનાનેા સમય હોય છે, એ જ નિર્જરાના