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________________ भगवतीमत्रे भणितव्याः । ज्योतिपिकस्य न भणितव्यम् । यावत्-स्यात् भदन्त ! पद्मलेश्यो वैमानिकः अल्पकर्मतरः, शुक्ललेश्यो वैमानिको महाकर्मतरः? इन्त, स्यात् , तत् केनार्थेन ? शेषं यथा नैरयिकस्य, यावत्-महाकर्मतरः ॥० ४॥ भाणियव्याओ) इसी प्रकारसे असुरकुमारों के विषयमें भी जानना चाहिये । परन्तु यहाँ पर एक तेजोलेश्या और अधिक होती है । इसी तरहसे वैमानिक तक भी जानना चाहिये। जिसके जितनी लेश्याएँ हो उतनी लेश्याएँ उनके कहना पर (जोइसियस्स न भण्णइ) ज्योतिषी देवोंके नहीं कहना (जाव सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकस्मतराए, सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए ?) हे भदन्त ! यावत् क्या ऐसा हो सकता है कि पद्मलेश्यावाला वैमानिकदेव अल्प कर्मवाला हो और शुक्ललेश्यावाला वैमानिक देव महाकर्मवाला हो । (से केणटेणं० सेसं जहा नेरइयस्स जाव महाकम्मतराए) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि पद्मलेश्यावाला वैमानिकदेव अल्पकर्मवाला हो सकता है ओर शुक्ललेश्यावाला महाकर्मवाला हो सकता है । माकीका जैसा कथन नारकजीवके विषयमें किया गया है वैसा ही कथन वैमानिक देवों के विषयमें भी यावत् वे महाकर्मवाले हो सकते हैं ऐसा जानना चाहिये ।। वेमाणिया, जस्स जत्तिया लेस्साओ-तम्स तत्तिया भाणियवाओ) मे પ્રમાણે અસુરકુમારના વિષયમાં પણ સમજવું પરંતુ તેમનામાં એક તેજલેશ્યા વધારે હે છે એ જ પ્રમાણ વૈમાનિકે પર્યન્તના વિષયમાં સમજવું જેમની જેટલી વેશ્યાઓ डाय मेट सेश्यामनु यन ४२७, परन्तु (जोइसियस्स. न भण्णइ) च्यातिषी हेवोनु ४थन ४२७ नही. (जाब सिय भंते ! पम्मलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, मुक्कलेम्से वेमाणिए महाकम्मतराए ?) हे महन्त । शुगे समवश छ । પત્રલેશ્યાવાળા માનિક દેવ અલ્પકર્મવાળા હોય છે અને શુકલેશ્યાવાળા વિમાનિક देव मामा डाय छ ? २मही सुधीन ४थन पाए) ४२j (से केणगुणं सेसं जहा नेरदयस्स जाव महाकम्मतराए) हे महत! मे मा५ शा २0 ४३ छ। પદ્મ શ્યાવાળા વૈમાનિક દેવ અલ્પકર્મવાળા હોઈ શકે છે અને શુકલેશ્યાળા વૈમાનિક દેવ મહાક વાળા હોઈ શકે છે? વૈમાનિકેના વિષયમાં બાકીનુ સમસ્ત કથન નારક જીવના વિષયમાં કરવામાં આવેલા કથન પ્રમાણે જ સમજવું “મહાકર્મવાળા હોઈ શકે છે, ત્યાં સુધીનુ સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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