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भगवतीसूत्रे
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नैरयिकः दुःखेन स्पृष्टः, अदुःखी नैरयिको दुःखेन स्पृष्टः ? गौतम ! दुःखी नैरयिको दुःखेन स्पृष्टः, न अदुःखी नैरयिको दुःखेन स्पृष्टः । एवं दण्डको यावत् - वैमानिकानाम् । एवं पञ्च दण्डका ज्ञातव्याः - दुःखी दुःखेन स्पृष्टः ? दुःखी दुःखम् पर्याददाति २, दुःखी दुःखम् उदीरयति ३, दुःखी दुःखं वदयति ४, दुःखी दुःखं निर्जरयति ५ ।। सू० ७ ॥
दुक्खेणं फुडे) दुःखी दुख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी दुःखसे स्पृष्ट नहीं होता है । (दुक्खो णं भंते ! नेरइए दुक्खेणं फुडे अदुक्खी नेरइए दुक्खे णं फुडे) हे भदन्त दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है कि अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? (गोयमा दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे णो अदुक्ख नेरइए दुक्खेण फुडे ) हे गौतम! दुःखी नैरयिक दुःखसे स्पृष्ट होता है अदुःखी नैरयिक दुःखसे स्पृष्ट नहीं होता है । ( एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं) इसी तरहकादण्डक यावत् वैमानिकों तकका जानना चाहिये । ( एवं पंच दंडगा नेयव्वा) इसी तरहसे नैरयिक आदि २४ पदोंके तथा एक समुच्चय जीव पढ़के ये ५-५ दण्डक जानना चाहिये वे ये हैं (दुक्वी दुक्खेणं फुडे १, दुक्खी दुक्खं परियाय २, दुक्खी दुक्खं उदीरे ३ दुक्खी दुक्खं वेएइ ४, दुक्खी दुक्ख निज्जरेइ) दुःखी दुःखसे स्पृष्ट होता है ? दुःखी दुःखको सबरूप से ग्रहण करता है २, दुःखी दुःखकी उदीरणा करता है ३, दुःखी दुःखी दुःखका वेदन करता है ४, दुखी दुःखकी निर्जरा करता है ५ । दुक्खेणं फुडे) दु.भी न स्पृष्ट होय है, अहु;मी कब हुयी स्पृष्ट होता नथी. (दुक्खीण भंते! नेरइए दुक्खेणं फुडे, अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुढे ?) डे लहन्त ! दुःखी नार लव दुःअथी स्पृष्ट होय छे, अहु:श्री नार दुणर्थी स्पृष्ट डाय छ ? (गोयमा ! दुक्खी नेरइए दुक्खे णं फुडे, णो अदुक्खी ने दुक्खेणं फुडे) हे गौतम! हु:मी नार व दुःअथी स्पृष्ट होय है, અદુ:ખી नथी ( एवं दंडओ जाव નારક જીવ દુ.ખથી સ્પષ્ટ હેાતા वेमाणियाणं) मे प्रभा वैमानि सुधीना : 3 सभा ( एवं पंच दंडगा नेयन्त्रा) मा रीते नारथी सधने वैभानि २४ होना तथा भेसभुस्यय कवचहनु मेभ २५ थद्दोना यांथ यांथ : 38: नीचे प्रमाणे सभवा- (दुक्खी दुक्खेणं फुढे, दुक्खी दुक्खं परियार, दुक्खी दुक्खं उदीरेइ, दुक्खी दुवखं वेएइ, दुक्खी दुक्खं निज्जरेइ) (१) दु:भी हुःअर्थी स्पृष्ट थाय छे, (२) दु:भी दुःमने समस्त