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पृष्ठाङ्क
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३८-४६ ४७-५८ ५८-८२ ८३-९०
श्री भगवतीसूत्र पांचवें भागकी
विषयानुक्रमणिका अनुक्रम अंक
छठे शतकका छट्ठा उद्देश १ रत्नप्रभा पृथ्वी के स्वरूपका वर्णन २ मारणान्तिक समुद्घातके स्वरूपका कथन
छट्टे शतकका सातवां उद्देश ३ सातवे उद्देशकका संक्षिप्त विषय कथन ४ शालि वगैरह जीव विशेषोंके योनिका कथन ५ गणनीय कालके स्वरूपका वर्णन ६ उपमेय कालके स्वरूपका निरूपण ७ सुषमसुपमा कालके भरतक्षेत्रके स्वरूपका कथन
आठवां उद्देश ८ आठवे उद्देशकके विपयोका संक्षेपसे कथन ९ पृथ्वी के स्वरूपका कथन १० आयुष्य बन्धके स्वरूपका कथन ११ लवण समुद्रके स्वरूपका निरूपण
नववां उद्देश १२ नववे उद्देशेके संक्षेपसे विषयका कथन १३ कर्मभेद के स्वरूपका निरूपण १४ महर्द्धिकदेव की विकुणाके स्वरूपका निरूपण १५ देवके ज्ञानाज्ञानके स्वरूपका निरूपण
दशवां उद्देश १६ दशवे उद्देशेके विषयोका निरूपण १७ अन्यतीर्थिकोंके मतका निरूपण १८ जीवके स्वरूपका निरूपण
९१-९२
११७-१४२ १४२-१५६
१५७ १५८-१६१ १६२-१८० १८०-१९५
१९६-१९७ १९८-२०९ २०९-२१८