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ला ॥१॥
गायमचाया-केवली खल भवति ॥ सू०
प्रमेयचन्द्रिका टीका. श.६. उ.१० सू.५ केवलिनोऽनिद्रियत्वनिरूपणम् २३३ मियंपि जोणइ, अमियं पि जाणई, जाव-निव्वुडे दंसणे केवलिस्स, से तेणतुणं०, गाहा-'जीवाण य सुह दुक्खं, जोवे जीवइ तहेव अविया य ।
एगंतदुक्खयण-अत्तमायाय केवली ॥१॥ 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥ सू० ५॥ ___ छाया-केवली खलु भदन्त ! आदानः जानाति, पश्यति ? गौतम ! गायमर्थः समय : तत् केनार्थेन. ? गौतम ! केवली पौरस्त्येन मितमपिजानाति, अमितमपि जानाति, यावत्-निर्दृतं दशनं केवलिनः, तत् तेनार्थेन.
केवली की अनिन्द्रियवक्तव्यता'केवली णं भंते !' इत्यादि
सूत्रार्थ-(केवली णं भंते ! आयाणेहिं जाणइ पासइ) हे भदन्त । केवली भगवान् क्या इन्द्रियों द्वारा जानते और देखतें हैं ? (गोयला) (णोइणढे सम?) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (ले केणटेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोथमा) हे गौतम! (केवली णं पुरथिमेणं मियपि जाणइ, अमियं पि जावइ, जाव निव्वुडे दलणे केवलिस्स-से तेण?णं) केवली भगवान् पूर्वदिग्गभाग में मित-परिमित को भी जानते हैं, और अपरिमित को भी जानते हैं। क्यों कि कवली भगवान् का यावत् दर्शन निवृत्त-आवरण रहित होता है ।
वानी गनिन्द्रिय पत्तव्यता'केवलीणं भंते !' त्यासूत्राथ-( केवळी णं भंते ! आयाणेहिं जाणइ पासई) 3 मान्त ! सा भगवान शु माहानी (धन्द्रिय) द्वारा तो छ मन हे छ ? (गोयमा !) dम ! (णो इण ट्रे समते) मे सलवी शतु नथी (से केण?णं ?)
! આપ શા કારણે આવું કહે છે કે કેવલી ભગવાન ઈન્દ્રિ દ્વારા જાણતા" नथी ? ( गोयमा !) गौतम ! ( केवलीणं पुरत्थिमेणं मियंपि जाणइ, मामय पि जाणड) पनी भगवान शिलामा (मत (भहित) ने पY and
न मभित (मभहित) ने पy nो छ (जाव निव्वुढे दसणे केवलिस्ससे तेणट्टेणं ) ( यावत्) gael मावाननु शन निवृत्त (आव२] २ जित जय छे તે કારણે હે ગૌતમ! મેં એવું કહ્યું છે