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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ६ उ. १० सू. १ अन्यतीर्थिकमतनिरूपणम् 'उवदंसित्तए' सर्वलोकेऽपि च सर्वजीवानां न शक्नुयात् कोऽपि पुरुषः सुखं वा, तदेव पूर्वोक्तं मुखं दुःखं वा यावत्- उपदर्शयितुम्, यावत्करणात् 'कोलास्थिकमात्रमपि, निष्पावमात्रमपि कलायमात्रमपि, माषमात्रमपि, मुद्गमात्रमपि, यूकामात्रमपि, लिक्षामात्रमपि, अभिनिवर्त्य' इति संग्राह्यम् । गौतमस्तत्र कारण पृच्छति - 'से केण ेणं ?' तत् केनार्थेन ? क्रेन कारणेन हे भदन्त ! उक्तरीत्या प्रोच्यते ? भगवानाह - 'गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे, जाव - विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! अयं खलु जम्बुद्वीपो द्वीपः यावत् - परिक्षेपेण परिधिना विशेषाधिकः प्रज्ञप्तः, यावत्करणात् 'सव्वदीवसमुद्दाणं सन्वन्भंणो चक्किया' समस्तलोक में भी सब जीवों के कोइ सुख अथवा दुःख को बाहर निकाल करके दिखलाने के लिये समर्थ नहीं है । यहां यावत् शब्द से 'कोलास्थिकमात्रमपि, निष्पावमात्रमपि, कलाय मात्रमपि माषमात्रमपि, मुद्गमात्रमपि, यूकामात्रमपि, लिक्षामात्रमपि अभिनिर्वत्य' इस पूर्वोक्त पाठ का संग्रह हुआ है । अब गौतम इस विषय में कारण जानने की इच्छा से प्रभु से पूछते हैं कि 'से केणं' हे भदन्त ! ऐसा आप जो कहते हैं सो इसमें क्या हेतु है - इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि- 'गोयमा' हे गौतम! 'अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता' यह जो जम्बूद्वीप नाम का द्वीप है कि जो परिधि से विशेषाधिक कहा गया है - अर्थात जिसकी परिधि कुछ विशेषाधिक है ऐसे पीछे आये हुए पाठ से इस परिधि का प्रमाण व्यक्त किया जा चुका है - इसी पाठको स्पष्ट समझने के लिये यहाँ यावत् पद से 'सव्वदीवसमुद्दाणं सव्व उवदंसित्तए णो चक्किया' समस्त सोम्ना समस्त लवाना सुख अथवा दुःमने આરના ઠળિયા આદિના જેટલું પણ મહાર કાઢીને બતાવવાને કાઇ સમથ નથી. અહીં जाव ( यावत् ) यहथी कौलस्थिकमात्रमपि निष्पावमात्रमपि कलायमात्रमपि, मानमात्रमपि, मुद्गमात्रमपि यूकामात्रमपि, लिक्षामात्रमपि अभिनिर्वत्य ' આ પૂકિત સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરાયા છે.
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गौतम स्वाभीना प्रश्न -' से केणट्टेणं ? ' डे लहन्त ! मेवुं साथ था अरये हो ? गोतम स्वाभीना प्रश्ननो भवाण भापता महावीर प्रभु छे- 'अयं णं "जंबुद्दीवे दीवे जाव विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता ' ' सूत्रम 'जान' પદથી જે સૂત્રપાઠ ગ્રહણુ કરાયા છે તે પૂર્વાંકત તમસ્કાય પ્રકરણુમાં આપવામાં આવેલે છે. આ સૂત્રપાઠ જ ખૂંદીપની વિશાળતા ખતાવે છે. તે સૂત્રપાઠ નીચે પ્રમાણે છે