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भगरतीयो बाह्यपुद्गलान् आदाय तथा परिणमयति । एवंरीत्या गन्ध-रस-स्पर्शानामपि परिणामान्तरं वर्णानां दश, गन्धस्य एकः, रसानां दश, स्पर्शानां च चत्वारो विकल्पाः । अविशुद्धलेश्यो देवः असमवहतेन आत्मना अविशुद्धलेश्य देवं, देवीं, तयोरन्यतरं वा जानाति ? नजानाति । एतत्तयाणों- पदानां क्रमशो योजनया द्वादशविकल्पा भवन्ति । तत आयेषु अष्टमु न जानाति । अन्तिमेषु चतुषु च देवो जानाति ॥
कर्मभेदवक्तव्यतामूलम्-जीवेणं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविहवंधए वा, अविहबंधए वा, छबिहवंधए वा, बंधुदेसो पण्णवणाए नेयवो ॥सू०१॥ ___ छाया- जीव खलु भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म वध्नन् कति कर्मप्रकृती: वध्नाति ? गौतम ! सप्तविधवन्धको वा, अष्टविध बन्धको वा, पविधवन्धको वा, वन्धोद्देशः प्रज्ञापनायाः ज्ञातव्यः ॥सू० १॥ नील पुद्गल के रूप में और नीलपुद्गलों को कृष्णपुद्गल के रूप में परिणमा देता है क्या ? बाह्यपुदगलों को ग्रहण करके वह ऐसा करता है। इसी तरह से गंध, रस, स्पर्श इन्हें भी परिणामान्तर रूप से परिणमाने के विषय में जानना चाहिये । वर्षों के १० विकल्प, गन्ध का ९ विकल्प, रसों के १० विकल्प, स्पर्शो के चार विकल्प । अविशुद्धलेश्यावाला देव असमवहत आत्मा द्वारा अविशुद्धलेश्यावाले देव को तथा देवी को या इन दोनों में से किसी एक को जानता है क्या ? उत्तर-नहीं जानता है। इन तीन पदों की क्रमशः योजना करने से, १२ विकल्प होते हैं सो आदि के आठ विकल्पों में वह देव नहीं जानता है अन्तिम चार विकल्पों में जानता है। અને નીલ પુગલેને કૃષ્ણ પુગરૂપે પરિણુમાવી દે છે?” ઉતર-બાહ્ય પુલને ગ્રહણ કરીને તે એવું કરે છે” એજ પ્રમાણે ગંધ, રસ અને સ્પર્શન પણ અન્ય પરિણામરૂપે પરિણુમાવવા વિષે પણ સમજવું. વર્ષોના દસ વિકલ્પ, ગધને એક વિકલ્પ, સેના ૧૦ વિકલ્પ અને સ્પર્શેના ચાર વિકલ્પ. અવિશદ્ધ લેફ્સાવાળો દેવ અસમવહત એટલે કે ઉપગ રહિત આત્મા દ્વારા અવિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવને તથા ટવીને અથવા सेवा मान्य आधन शुतो छ ? उत्तर- "ongता नथी", मेधुं ४थन: