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________________ ८४ भगवती सूत्रे यावत्- कुश - विकुश - विशुद्ध-वृक्षमूलानि यावत् षद्विधा मनुष्या अनुषंक्तवन्तः, तद्यथा- पद्मगन्धाः, मृगगन्धाः अममाः, तेजस्तलिनः, सहाः, शनैश्वरिणः, तदेवं मदन्त ! तदेवं भदन्त । इति ॥ म्र० ४ ॥ जाव आसघंति) जैसा आलिंगपुष्करवाद्यविशेष के मुखकापुट होता है वैसा भरतक्षेत्रका भूमिभाग था इस तरहकी यहां पर भारतवर्ष के संबंध में उत्तरकुरुको वक्तव्यता जाननी चाहिये यावत् बैठते हैं, सोते हैं, (तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहि बहवे उराला, कुद्दासा, जाव कुसविकुसविसुद्ध रुक्खमूला जाव छविवहा मणुस्सा अणुसज्जित्था ) उसकाल में भारतक्षेत्र में उन उन देशों में, उन२ स्थलोंमें बहुत बडेर उद्दालक यावत् कुश और विशुद्ध षृक्षमूल थे, यावत् छह प्रकारके मनुष्य थे (तंजा) वे इस प्रकार से (पम्हगंदा, मियगंधा, अममा, तेयतली, सहा सर्णिचारा, सेवं भते ! सेव ! त्ति) पद्मके समान गंधवाले१, कस्तूरीके समान गंधवाले२, ममताभाव से रहित३, तेजस्वी तथा रूपवाले४, सहनशील५ और घीरे चलनेवाले हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह सब ऐसा ही हे भदन्त आपने कहा है वह सब ऐसा ही है । 65 उत्तरकुरुवत्तवता नेयव्वा जाव आसयंति संयंति ) नेवी रीते तणसानो भुभपुट સમતલ હાય છે, એવા જ સમતલ ભારતવર્ષના ભૂમિભાગ હતા. જીવાભિગમ સૂત્રમાં જેવી ઉત્તરકુરુની વકતવ્યતા આપી છે. એવી જ ભારતવર્ષેની વકતન્યતા પણુ અહી ગ્રહણ કરવી. બેસે છે, શયન કરે છે'' ત્યાં સુધી તે વકતવ્યતા ગ્રહણુ કરવી. (तीसेणं समाए भारहे वासे तत्थ तत्थ देसे देसे तर्हि तर्हि बहवे उराला कुद्दाला, जाव कुल विकुल विसुद्ध रुक्खमूला जाव छन्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था ) તે કાળે ભારતવષ માં તે તે દેશેામા, તે તે સ્થળામાં ઘણા જ મેટાં ઉદ્દાલક (એક વૃક્ષનું नाभ) (यावत्) देश भने विठुराया विशुद्ध वृक्षभूण हता, (यावत्) छ् अहारना भनुष्य sai - (तं जहा) नेम (पम्मगंधा, मियगंधा, अममा, तेयतली, सहा, सर्णिचारा, 'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति' ) (१) पद्मना नेवी गंधवाणा, (२) ४स्तुरीना देवी गधवाना, ( 3 ) भभता भावथी रहित, (४) तेनस्वी तथा सुंदर, (५) સહનશીલ અને (૬) ધીરે ધીરે ચાલનારા. ગૌતમ સ્વામી ભગવાનનાં વચનેને પ્રમાણભૂત માનીને કહે છે—હે ભદન્ત ! આપની વાત સાચી છે. હું ભન્ત ! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું. તે સર્વથા સત્ય જ છે.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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