________________
भगवतीस्से पुरुषो वध्नाति ? ' नपुंसओ वंधइ ? ' नपुंसको वध्नाति ? णोइत्थी-णोपुरिसगोनपुसभी बंधइ ?' नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसको वध्नाति ? यो जीवन स्त्री, न पुरुषः, नापि नपुंसको वर्तते सोऽपि किं ज्ञानावरणीय कर्म वनाति ? इत्याशयः, भगानाह -' गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ' हे गौतम ! स्त्री अपि ज्ञानावरणीयं कर्म बध्नाति, पुरुपोऽपि तत्कर्म वध्नाति, नपुंसकोऽपि जीवः तत्कर्म वध्नाति, किन्तु ' नोइत्थी-णोपुरिस-गोनपुंसओ सिय बंधइ, सिय णो बंधई' नो स्त्री-नोपुरुप-नोनपुंसको जीवः बंधइ) हे भदन्त ! आत्मा के ज्ञानगुण को आवरणकरने के स्वभाववाले ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौन करता है ? क्या इस कर्म का बंध स्त्री करती है ? या (पुरिसो बंधइ) पुरुष करता है ? या (नपुसओ बंधइ) नपुंसक करता है ? अथवा-ऐसा जीव करता है कि जो (णाइत्थी) न स्त्री है ? (णोपुरिस जोनपुंसओ) न पुरुष है ? न नपुंसक है? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (इथि वि चंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधह) ज्ञानावरणीय कर्म के बंध करने में ऐसी कोई रुकावट नहीं है कि स्त्री ही इस कर्मका बंध करेपुरुष न करे अथवा पुरुष ही करे-नपुंमक न करे-तीनों ही वेवाले इस कर्म का बंध करते हैं-"स्त्री भी इस कर्म का बंध करती है, पुरुष भी इस कर्म का बंध करता है और नपुंसक भी इस कर्म का बंध करता है। पर हां, यह बात अवश्य है कि जो जीव (णोइत्थी, णोपुरिस, णो णं भंते ! कम्म कि इत्यो बंधइ ?" HEd! मामाना ज्ञानशुशनु मा. રણ કરવાના સ્વભાવવાળા જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કોણ કરે છે? શું આ मना मध श्री रे छ १ मय। “ पुरिसो बध" पुरुष ४३ छ ? मथ " नपुसओ बधइ ? " नपुस ४रे छ१ मा ज्ञानावरणीय ४मना म शुगे। ७१ ४२ छे , रे “णो इत्थी" श्री नयी ? " णो पुरिसे" पुरुष नथी १ " णो नपुंसओ" भने नस नथी ?
ગૌતમ સ્વામીના આ પ્રશ્નનો જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે(गोयमा ) 3 गौतम । (इत्थी वि बंधइ, पुरिसो विबंधइ, नपुसओ वि बधह) જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બધ સ્ત્રી પણ કરે અથવા પુરુષ પણ કરે અને નપુંસક પણ કરે છે ત્રણે વેલવાળા જીવો આ કર્મને બંધ કરે છે-“જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બધી પણ કરે છે, પુરુષ પણ કરે છે અને નપુંસક પણ કરે છે પરંતુ એવું અવશ્ય भने छ । २ ०१ (णोइत्थी, णोपुरिस, पोनपुसओ सिय बधइ, सिय णो बघह)