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प्रमैयबन्द्रिका टी० शं० ६ ० ३ ० ४ कर्म स्थितिनिरूपणम्
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बध्नाति, असंज्ञी वध्नाति, नोमव्ज्ञि नोअसंज्ञि वध्नाति ? गौतम ! संज्ञी स्याद् बध्नाति, स्याद् न बध्नाति, असंज्ञी बध्नाति, नोसंज्ञि - नोअसंज्ञी न बध्नाति, एवं वेदनीया - ssयुकः षट् कर्मप्रकृतयः, वेदनीयम् अधस्तनौ द्वौ वध्नीतः, उपरितनो भजनया, आयुष्कम् अधस्तनौ द्वौ भजनया, उपरितनो न वध्नाति ।
होता है वह इस स्थिति में आयुकर्म का बंध नहीं करता है । ( णाणावरणिज्जं णं भते । कम्मं किं सन्नी बंधइ, असन्नी बंधइ, णो सन्नी, णो असनी बन्धइ ) हे भदन्त । ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौन जीव करता है- क्या जो जीव संज्ञी होता है वह करता है ? या जो जीव असंज्ञी होता है वह करता है ? (नो असन्नी बंधइ ) अथवा जो नो संज्ञी होता है वह या जो असंज्ञी होता है वह करता है ? ( गोयमा ) हे गौतम! (सन्नी लिय बंधइ, सिप नो बंध, असनी बंध, नो सन्नी, नो असन्नी न बन्धइ ) जो संज्ञी जीव होता है व ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता भी है, और नहीं भी करता है । जो असंज्ञी जीव होता है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है । पर जो नो संज्ञी असंज्ञी जीव २ हैं वे इस ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करते हैं । ( एवं वेयणिज्जाउगवज्जाओ छ कम्मप्पयडीओ, वेयणिज्जं हेट्ठिल्ला दो बंधेति, उवरिल्ले भयणाए, आउगंहेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बधइ ) इसी तरह से वेदनीय और आयु के सिवाय छ कर्म प्रकृतियों के विषय में भी कथन जानना चाहिये । वेदनीय कर्म का बंध
( णाणावरणिज्जं णं भते ! कम्मं किं सन्नी बधइ, असन्नी बंधइ, जो सन्नो, णो असन्नो बधइ १ ) डे लहन्त । ज्ञानावरणीय अर्मनी मध शुं संज्ञी જીવ ખાંધે છે? કે અસંગી જીવ ખાંધે છે? અથવા જે ના સી હોય છે તે માંધે છે ? કે જે ના અસની હાય તે ખાધે છે?
( गोयमा ! ( सन्नी सिय बंधइ, सिय नो बधइ, असन्नी बंधइ, नो सन्नी, नो असन्नी न बधइ ) संज्ञी व ज्ञानावरणीय ना गंध रे छे અને નથી પણ કરતા, અસની છવ જ્ઞાનાવરણીય કાઁના અધ કરે છે, પણુ ના સંજ્ઞી અને ના અસંજ્ઞી જીવા જ્ઞાનાવરણીય કાઁના ખંધ કરતા નથી.
( एवं वैयणिज्जा गवज्जाओ छ कम्म पयडीओ, वेयणिज्जं हेट्ठिला दो बाँधति, उवरिल्ले भयणाए, आउग हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ ) आा प्रा રનું કથન વેઢનીય અને આયુકમ સિવાયની છ ક પ્રકૃતિના વિષયમાં પણ સમજવું. સજ્ઞી જીવા વેદનીય કમના ખધ કરે છે, અસની જીવા વેદનીય