SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसो दीवे मंदरस्स पन्चयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं अणंतरपुरक्खडसमयसि वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जइ ? हंता, गोयमा ! जाव-पडिवज्जइ' इत्यादिरूपो घोध्यः, एवम् ' आणपाणून वि' आन-प्राणाभ्यामपि उक्तसमयाभिलापवत् आलापका वक्तव्यः, आन-प्राणश्च उच्छ्वासनिःश्वासकालरूपो बोध्यः, तदभिलापस्वरूपञ्चोपर्युक्तावलिकाभिलापस्वरूपवत् स्वयमूहनीयम्, एवम् 'योवेण वि' स्तोकेनापि पूर्ववदभिलापो वक्तव्यः स्तोकश्च सप्तपाणप्रमाणः, एवं लवण वि' लवेनापि पूर्ववदभिलापो-भणितव्यः, लवश्च सप्तस्तोकरूपः तथा 'मुहुरेण वि' मुहूर्तेनापि अभिलापः पूर्ववद् वोध्या, मुहूर्तस्तु सप्तसप्तति लवप्रमाणः, एवम् 'अहोरोण वि' अहोरात्रेणापि अभिलापो वक्तव्यः, अहोरात्रश्च त्रिंशन्मुहूर्तामेणं अणन्तरपुरक्खडसमयंसी वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जह ? हंता, गोयमा जाव पडिवज्जद) इत्यादि । इसी तरह से (आणपाणून वि) आन प्राण को भी लेकर उक्त समय के अभिलाप की तरह आला. पक कहना चाहिये । उच्छ्वास निःश्वास कालरूप यह आनप्राण होता है। इस के अभिलाप का स्वरूप उपर्युक्त आवलिका के अभिलाप के स्वरूप की तरह से ही अपने आप समझना चाहिये। इसी तरह से (थोवेण वि) स्तोक को लेकर भी पहिले जैसा ही अभिलाप कहना चाहिये। सात प्राण रूप यह स्तोककाल होता है। ( एवं लवेण वि) इसी तरह से लव को लेकर भा अमिलाप जानना चाहिये-सातस्तोकोंका एक लव होता है । तथा-(मुहुत्तेण वि) पूर्व की तरहसे मुहूर्त को लेकर भी अभिलाप कहना चाहिये-७७सितोतेर लवों का एक मुहूर्त या पडिवज्जइ, तयाण जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरथिमपच्चस्थिमेण' अणंतर पुरक्खडसमयसि वासाण' पढमा आवलिया पडिवज्जइ ?) हता, गोयमा ! जाव पडिवज्जइ) त्याहि मे प्रमाणे ( आणपाणून वि) मानानी मક્ષાએ પણ સમયના આલાપક જેવો જ આલાપક કહે જોઈએ. ઉચ્છુવાસ નિઃશ્વાસ કાળરૂપ તે આનપ્રાણું હોય છે. તેનું સ્વરૂપ ઉપર્યુક્ત આવલિકાના माला५४॥ २१३५ रे । सभड देवु से प्रभारी (थोवेण वि) स्तानी અપેક્ષાએ પણ એ જ આલાપક કહે. સાત પ્રાણરૂપ કાળને સ્તોક કહે છે. ( एवं लवेण वि) सनी अपेक्षा पर मेवा मासा५४ ४ स्तन मे सामने छ. ७७ सत्यातेर सवर्नु मुहूत मन छ. (मुहुर्तण नमे सात वि. भुतनी अपेक्षा ५ वी 4 मासा५४ ४ न. "अहोरत्तेण
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy