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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०७सू०५ परमाणुपुद्गलादीनां स्वरूपनिरूपणम् ५१५ अत्रति ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम् ; उत्कर्पण आवलिकाया असंख्येयभागम् । एवं यावत्-असंख्येयप्रदेशावगाढः । वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-सक्ष्मपरिणत-चादर- . परिणतानाम् एतेषाम् यदेव संस्थानं तदेव अन्तरमपि भणिनव्यम् । शब्दपरिणतस्य खलु भदन्त । पुद्गलस्य अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! हे गौतम ! (जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेनं कालं, एवं जीव असंखेज्ज पएमोगाढे) एक प्रदेश में अवगाह हुए सकंर पुनल स्कंध कों अपनी वही सकंप पर्याय को छोड़ने के बाद धारण करने में जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से असंख्यात काल का अन्तर पड़ता हैं। इसी प्रकार यावत् आकाश के असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ हुए पुद्गल स्कन्धों के विषय में भी समझना चाहिये । ( एगपएसोगाढस्म गंभंते। प्रोग्गलस निरेयस्स अंतरं काली केवनिरं होई) हे भइन्न । एक प्रदेश में अवगाढ हुए निष्कंप पुद्गल को अपनी निष्कप पर्याय को छोड़ ने के बाद पुनः उसी निष्कंप पर्याय को धारण करने में काल की अपेक्षा कितना अन्नर पड़ना है ? ( गोयमा ) हे गौतम ! (जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखे जइभाग-एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढे ) एक प्रदेश में अवगाढ हुए निकंप पुद्गल को अपनी निष्कंप पर्याय को छोड़ने के बाद पुनः उसी निष्कंप पर्याय को धारण करने में कम से कम अन्तर एक समय का और अधिक से अधिक अन्तर
जाणेणं एग समय उक्कोसेणं असंखेन्जकाल-एवं जाव असाखेजपएसोगाढे ) એક પ્રદેશમાં રહેલા સકપ પુલ સ્કલ્પને પોતાની એ જ સકપ પર્યાય ફરી ધારણ કરવામાં ઓછામાં ઓછા એક સમય અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળ લાગે છે. એ જ પ્રમાણે આકાશના અસંખ્યાત પર્યન્તના પ્રદેશમાં રહેલા युद्ध २४-धाना मत२४ (वि ) वि ५ सभा.(एगपएसोगाढस्सणं भते! पोगलस्स निरेयस्स अंतर केवच्चिर होइ ?) महन्त ! मे प्रशनी અવગાહનાવાળા નિષ્કપ પુલને, પિતાની નિષ્કર્ષ પર્યાયને ત્યાગ કર્યા પછી ફરીથી એ જ નિષ્કર્ષ પર્યાય ધારણ કરવામાં કાળની અપેક્ષાએ કેટલું અસર ५३१ (गोयमा ! ) गौतम ! (जहण्णेण एग समय उक्कोसेण श्रावलियाए असखेज्जइ भाग-एवं जाव असखेज्जपएसोगाढे ) मे प्रशनी अगाडनाव નિષ્કપ પર્યાયને ત્યાગ કર્યા પછી ફરીથી એ જ નિષ્કપ પર્યાય ધારણ કરવામાં એામાં ઓછા એક સમયનું અને વધારેમાં વધારે આવલિકાના અસંખ્યાતમાં