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प्रमैयथन्द्रिका २००५ ३०७ २०४ परमाणुपुरलादीनां स्पर्शनानिरूपणम् ४८७ स्पृशति यथा त्रिपदेशिकखिप्रदेशिकं स्पर्शितः एवं त्रिदेशिको यावत् - अनन्त प्रदेशिकेन संयोजयितव्यः, यथा त्रिप्रदेशिकः एव यात्- अनन्तप्रदेशिको भणितव्यः || सू० ४ ॥
टीका - परमाणुपुद्गलाधिकारात् तदुद्विशेपवक्तव्यतामाह - ' प्रमाणुयोग्ग लेणं भंते ! ' इत्यादि ।' परमाणुपोग्गलेणं भते । परमाणुपोग्गलं फुलमाणे . को रपर्श करता है तो वह प्रथम, तृतीय, चतुर्थ, षष्ठ, सप्तम और नचवें विकल्प के अनुसार करता है । ( पिएसओ पिएसिये फुलमाणो Roda ठाणे सह, जहा तिपएसिओ तिपएसियं साओ एवं तिपएसओ जान अनंतपएसिएणं संजोएयन्त्रो जहा तिप्पएसिओ एवं जात्र अणतपएसओ भाणियच्चो ) त्रिप्रदेशी स्कन्ध जब दूसरे त्रिप्रदेशी स्कन्ध को सर्श करता है तो वह नौ ही विकल्पों के अनुसार उसका स्पर्श करता है । जिस पद्धति के अनुसार त्रिप्रदेशी स्कन्ध त्रिप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता है उसी पद्धति के अनुसार वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध का स्पर्श करता है । चतुष्यदेशिक सन्ध भी इसी तरह से तथा पत्रप्रदेशिक आदि स्कन्ध भी इसी तरह से परमाणु पुद्गल आदि का स्पर्श करते हैं- ऐसा समझना चाहिये ।
टीकार्थ- परमाणु पुद्गल का अधिकार होने से सूत्रकार इसी संबंध में विशेष वक्तव्यता को प्रकट करते हुए कहते हैं ( परमाणुपोग्गलेणं भंते 1 ) इत्यादि । गौतम स्वामी प्रभु से इस विषय में ऐसा पूछते हैं स्पर्श' १रे तो चूहेला, त्रील, थोथा, छठ्ठी, सातसां भने नवमां विम्य अनुसार ४२ छे. (तिपएसिओ तिपदसिय फुंसमाणो सव्वेसु वि ठाणेमु फुलइ, जहा तिपएसिओ तिपएसिय' फुसाविओ एवं तिपएसिको जात्र अणतपएसिएण संजोएयव्वो जहा तिप्पएसिओ एव जाव अणतपएसिओ भाणियव्वो) भेउ त्रिप्रदेशी સ્કન્ધ ખીજા ત્રિપ્રદેશી સ્કન્ધના સ્પર્શી કરે તે તે સ્પર્ધા નવે વિકલ્પે અનુ સાર કરે છે. જે રીતે એક ત્રિપ્રદેશી સ્કન્ધ બીજા ત્રિપ્રદેશી ન્યને સ્પ કરે છે, એજ રીતે તે ત્રિપ્રદેશી સ્કન્ધ અનત પ્રદેશિક પન્તના સ્કન્ધાના સ્પા કરે છે. ચાર પ્રદેશોવાળા કન્ય પણ એજ પ્રમાણે તથા પંચપ્રદેશિક આદિ સ્કન્ધ પણ એજ પ્રમાણે પરમાણુપુદ્ગલ આદિના સ્પર્શી કરે છે, એમ સમજવું,
ટીકા-પરમાણુ પુદ્ગલનું નિરૂપણ ચાલી રહ્યુ છે. તેથી ા સૂત્રમાં તેના સ્પર્શ કેવી રીતે થાય છે તે સૂત્રકારે બતાવ્યું છે
गौतम स्वामीनो अश्न – (१) " परमाणुपोग्गलेण भंते ! परमाणुपोगले