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________________ प्रमेवन्द्रिका टीका श०५३०७ सू०४ परमाणुपुङ्गलीनां स्पर्शनानिरूपणम् ४८५ एवं स्पर्शयितव्यः यावत् - अनन्तप्रदेशिकः ? द्विप्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः परमाणुपुद्गलं स्पृशन् पृच्छा ? तृतीयनवमाभ्यां स्पृशति, द्विपदेशिको द्विपदेशिकं स्पृशन् प्रथम- तृतीय- सप्तम नवमैः रपृशति द्विपदेशिकखिप्रदेशिकं - मेहिं तिर्हि सइ) तथा तीन प्रदेशवाले पुद्गलस्कन्ध का जब पुगल परमाणु स्पर्श करता है - तो वह सानवें, आठवें और नववें विकल्पकी अपेक्षा के अनुसार उसे स्पर्श करता है। (जहो परमाणुपोग्गले तिप्पर सियं कुसाविओ एवं फुसावेयव्वी जाव अणतपए सिओ) जिस प्रकार से तीन प्रदेशवाले स्कन्धको स्पर्श करने के विषयमें यह कथन किया गया है- अर्थात् परमाणुपुद्गल तीन प्रदेश वाले स्कन्ध को जैसे - सातवें, आठवें, और नववें विकल्प के अनुसार स्पर्श करता है उसी तरह से वह यावत् अनन्त प्रदेशों वाले स्कन्ध को भी स्पर्श करता है ऐसा जानना चाहिये ( दुप्पसि णं भंते ! खंधे परमाणुरोग्गलं फुसमाणे पुच्छा) हे भदन्त ! परमाणु पुगल को द्विप्रदेशी स्कन्ध किस रीति से स्पर्श करता है (गोयमा) हे गौतम! (तस्स नवमेहिं फुसइ ) तृतीय और नवम विकल्पों के अनुसार द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता है । (दुप्पसिओ दुप्पएसियं फुलमाणे पढ़मतइयसत्तणवमेहि फुसइ दुप्पएसिओ निप्पएसियं कुममाणो आहल्लएहिं य पच्छिल्लएहि यतिहिं फुसइ) द्विदेशी स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध को प्रथम, तृतीय, सप्तम, नवम विकल्प से स्पर्श करता है द्विप्रदेशी स्कन्ध जय तीन प्रदेश वाले पुल સ્કન્ધના સ્પર્શ કરતુ પરમાણુ પુદ્ગલ, છેલ્લાં ત્રણ એટલે કે સાતમાં, આઠમાં थाने नवभां विपुपनी अपेक्षा अनुसार तेनो स्पर्श' उरे छे. ( जहा परमाणु पांग्गले तिप्पएसियं फुमाविओ एवं फुसावेयत्रो जाव अणतपएपिओ) परभा પુદ્ગલ જે રીતે ત્રિપ્રદેશી પુદ્ગલ સ્કન્ધના સ્પર્શ કરે છે. એજ રીતે અનત પન્તના પ્રદેશોવાળા પુદ્ગલ સ્કન્ધાના સ્પશ કરે છે એટલે કે તે તેમને સ્પર્શ પણ સાત, આઠ અને નવમાં વિકલ્પ અનુસાર કરે છે એમ સમજવું, ( दुप्पएसिएण भंते! खंधे परमाणु रोग्गलं फुसमाणे पुच्छा ) हे लहन्त ! द्विअ हेशी २४न्ध परमाणु युद्द्धसना देवी रीते स्पर्श अरे छे ? " गोयमा ! ) डे गौतम ! ( तइयन मेहिं फुसइ ) द्विप्रदेशी २४न्ध श्री याने नवसां निय मनुसार परभागु पुद्गलना स्पर्श ४२ छे. ( दुप्पएसिओ दुप्पएसिय फुखमाणे पढमतइयसत्तणबमेहि फुसइ ) मे द्विप्रदेशी सुन्ध यील द्विप्रदेशी सुन्धनो ફ્લેશ કરે તે પહેલા, ત્રીજા, સાતમાં અને નવમાં વિકલ્પ અનુસાર સ્પ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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