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________________ sheeन्द्रिका टी० श० ५ ७० १ सू० २ रात्रिदिवस स्वरूपनिरूपणम् तिष्ठति, दिवसद्वयमित्यर्थः सर्वाधिक दिवसमानन्तु अष्टादशमुहूर्तात्मकमुक्तम्, अष्टादश च पष्टेदेशभागफलरूनपटूत्रितयरूपा भवन्ति अर्थात् पष्टेः दशभिर्भागे हृते यद् भागफलं पट्रूपं तस्य त्रिभिर्गुणितत्वे अष्टादश इति जायते । यदा च अष्टादशमुहूर्त दिनं भवति तदा रात्रिमानं द्वादशमुहूर्तात्मकं भवति, द्वादश च षप्टेर्दशभागफलषड्वयरूपाः भवन्ति, तत्र च मेरुम्पति षडशीत्यधिकचतुः शतोत्तरनवसहस्रयोजनानि नव च दशभागशेषाणि योजनस्य - ९४८६१ एतत्सर्वाधिकदी दिवसमा ने वक्ष्यमाणदशभागफलत्रयात्मकं तापक्षेत्रमानं भवति किञ्चिद्विशेपोनत्रयोविंशत्यधिकषट्शतो त रकत्रिंशत्सहस्रयोजन (३१६२३) मानस्य मन्दरपरिधेः (गोलाकारस्य ) दशभिर्हते भागे भागफललब्धिरूपस्य द्विषतालीस घंटे में) सूर्य मंडल को पूरता है-अर्थात् एक मंडल में सूर्य साठ मुह तक दो दिन तक रहता है। बडे से बड़े दिन का प्रमाण अठारह मुहूर्त का कहा गया है सो ये अठारह, साठ को दश से भाजित करने पर जो एक भागरूप ६ छह आते हैं उन्हें तीन से गुणा करने रूप हैंअर्थात् साठ के दशभागफलरूप ६छह के तीन भागरूप हैं। जब अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब रात्रि का प्रमाण बारह मुहूर्त्त का होता है । सो ये बारह साठ के दश भाग करने से जो एक आता है-उसके दो भागरूप हैं । तात्पर्य कहने का यह है कि अठारह दश भाजित ६० साठ के एकभाग के तीन भागरूप और बारह दशभाजित साठके एक भाग के दो भागरूप हैं । इसमें मेरु के प्रति आयाम की अपेक्षा सब से अधिक पढेदिन में ९४८६ नवहजार चारसो छयासी योजन जितना तापक्षेत्र होता है - यह तापक्षेत्र, मेरु की परिधि का जितना प्रमाण है उसके दशभाग के एकभागके तीन भागरूप है । वह इस प्रकार से - સુધી) રહે છે. એટલે કે બે દિવસમાં સૂર્ય એક મંડળને પસાર કરે છે. મેટામાં મેટા દિવસનું પ્રમાણ ૧૮મુહૂત નુ કહ્યુ છે. તે અઢાર સાઠને ૧૦ૠસવડે ભાગી જે लागार आवे तेना उ गाइ छे ( ५८ = १० - २० x ३ ) भेटले + = ૨૮ જ્યારે ૧૮ મુહૂતના દિવસ હાય છે, ત્યારે ૧૨ મુહૂतंनी रात्रि होय छे. ते १२ भुहूर्त, नी भराभर छे. अथवा ६० ના ૧૦માં ભાગના મેં ગણા જેટલું છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ૪૮ = ૬૦ +૧૦+૩ અને ૧૨ = ૬૦ = ૧૦ ૪૨ સૌથી મેાટા દિવસે પ્રકાશયુક્ત ક્ષેત્ર મેરુના આયામ ( લખાઇ )ની અપેક્ષાએ ૯૪૮૬ નવ હજાર ચારસા છયાસી હ ચેાજન છે. આ તાપક્ષેત્ર ( પ્રકાશયુક્ત સ્થાન ) મેરુના પરિઘના પ્રમાણુ કરતાં ૐ માં ભાગ પ્રમાણ છે. મેરુના પરિઘ ૩૧૬૨૩ એકત્રીસ હજાર છસેા ત્રેવીસ भ ५
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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