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प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ ० ७ सू०२ परमाणुपुद्गलादिविभागनिरूपणम् ६७७ अपएसे ' हे गौतम ! परमाणुपुद्गलः निरंशत्वात् अनर्धः अर्धरहितः, अमध्यः - मध्यरहितः, अप्रदेशः प्रदेशरहितो वर्तते, किन्तु 'णो सअड्ढे, णो समझे, णो सपए से 'नो सार्थ:- अर्धसहितः, नो समध्यः - मध्यसहितः, नोवा सप्रदेश:प्रदेशसहितो वर्तते तस्य निरंशत्वादेव | गौतमः पुनः पृच्छति - ' दुष्पएसिएणं भंते ! खंधे किं सअड्ढे, समझे, सपए से '' हे भदन्त ! द्विदेशिकः खलु स्कन्धः किम् साधैः, समभ्यः, समदेशः ? ' उदाहु अणड्ढे अमज्ज्ञे अपए से ? ' उताहो अनर्धः, अमध्यः, अप्रदेशः ? भगवानाह - ' गोयमा ! सअड्ढे, अमज्झे, सपएसे ?' (गोयमा) हे गौतम! (अणडे, अमज्झे, अपए से) परमाणु पुद्दल निरंश होने के कारण अनर्ध- अर्धभाग से रहित होता है । अमध्य-मध्यभाग - से रहित होता है । अप्रदेश-प्रदेशरहित होता है । इसी लिये वह (णो सअड्डे ) पुद्गलपरमाणु अर्धभाग सहित नहीं होता है, ( णो समझे ) मध्यभाग सहित नहीं होता है, ( णो सपएसे ) और प्रदेश सहित नहीं होता है । अब गौतम पुनः प्रभु से दो प्रदेशों वाले पुद्गल स्कन्ध के विषय में इसी पूर्वोक्त प्रश्न के अनुसार पूछते हैं कि - ( दुप्पएसिए भंते ! खंधे किं स अड्डे, समझे, सपएसे ) हे भदन्त ! दो प्रदेशों वाला जो पुद्गल स्कन्ध है वह क्या अपने अर्धभाग से युक्त है ? मध्यभाग से युक्त है ? और प्रदेश से युक्त है ? ( उदाहु ) अथवा - ( अणड्ढे, अमज्झे, अपए से ) अर्धभाग से रहित है ? मध्यभाग से रहित है ? प्रदेश से रहित है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - ( गोयमा ) हे गौतम ( स अड्डे ) द्विदेशिक स्कन्ध समप्रदेशवाला होने से - समसंख्यक प्रदेश
" गोयमा ! " हे गौतम! " अणड्ढे, समज्झे, अपएसे " પરમાણુ પુદ્ગલ નિર ́શ ( અવિભાગી) હાવાને કારણે અન ( અભાગથી રહિત ) व्यमध्य (मध्यभागथी रहित ) भने प्रदेश ( प्रदेश रहित ) होय छे, तेथी भ ते “जो सअद्ढे” परमाणु युद्धस अर्ध लागथी युक्त होतु' नथी, “ णो समझे " भध्यलागथी युक्त होतु' नथी, " णो सपएसे " अने अहेश सहित यणु होतु' नथी, હવે ગૌતમ સ્વામી દ્વિપ્રદેશી પુદ્ગલ સ્કન્ધના વિષયમાં પણ પરમાણુ युद्धस नेवा प्रश्न पुरे छे -" दुप्पएसिएण भंते ! खधे किं सअड्ढे, अमज्झे, सपएसे ? ” डे लहन्त ! मे प्रदेशवाणी युद्ध २४न्ध शुद्ध अर्ध लागथी युक्त હાય છે? મધ્યભાગથી યુક્ત હાય છે ? પ્રદેશથી યુક્ત હોય છે ? “ उदाहु अड्ढे, समझे, अपएसे ? " ते शु अर्ध लागधी रहित होय छ ? મધ્યભાગથી રહિત હાય છે? અને પ્રદેશથી રહિત હાય છે ?
અથવા 6:
उत्तर गोयमा ” " हे गौतम ! " सअड्ढे, सपएसे, समझे " द्विअद्देशी
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