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अमेयचन्द्रिका टी० श० ५ उ७ ७ सू० १ परमाणुपुलस्वरूपनिरूपणम् ::४५७ स्यात् कदाचित नो एजते, २ “शियदेसे एयड नो देसे एयह " स्यात् कदाचित् पदेशः त्रिप्रदेशिकरकन्धैकागः एजते, कदाचित् नो देशः तदेकभागः एजते, ३
सियदेसे एयइ-नो देशा एयंनि ' स्यात् कदाचित् देशः एकभागः एजतेनो • देशौ द्विभागौ एजेते, ४ अथ 'सिय देमा एयंति-नो देसे एयइ' स्यात् कदाचित्
देशौ द्विदेशी एजेते, नो देगः एकभागः एजते, ५ । गौतमः, पुनः पृच्छति'चउप्पएसिएण भते ! खधे एयइ ? ' हे भदन्त ! चतुष्प्रदेशिकः चतुष्पदेशवान् "खलु स्कन्धः एजते किम् ? ३गवानाह- गोयमा ! सिय एयइ , सियनो एयइ' : हे गौतम ! स्यात् कदाचित् एजते चतुप्पदेशवान् स्कन्धः ' कम्पते, स्यात् कदाचित् नो एजते, २ 'सिय देसे एयइ-णो देसे एयइ' स्यात् कदाचित् स्कन्ध कभी कंपित भी होता है और कभी नहीं भी कंपित होता है। (सिय देले एपइ नो देसे एयइ ) कभी उस स्कन्ध का एकभाग कंपित होता है और एकमाग कंपित नहीं होता है। (.सिथ देसे एयह.नो .देसा; एयंति ) कभी ऐसा भी समय होता है कि जब उस तीन प्रदेशों वाले स्कन्ध का एक भाग ही कंपिन होता है, दो भाग कंपित नहीं होते हैं । (सिय देला एयंलि नो देले एयह ) तथा कभी ऐसा भी होता है कि जब उसके दो भाग ही कंपित होते हैं एक भाग कॅपित नहीं होता। गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं-( चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयइ) हे भदन्त ! चार प्रदेशों वाला जो पुद्गल स्कन्ध है वह क्या कंपित होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा!) हे.गौतम ! (सिय एयइ, मिस नो एयह ) हां कभी वह कंपिन होता है और कभी वह कंपित नहीं होता है । ( हिय देसे एयह णो देखे एयइ ) कभी उस ५] पत. (डिय देसे एचइ नो देस एयइ ) या२४ ते २४.धनी...माग
पित थाय छ भने मे In पित थत नथी (सिय देसे एयइ नो देसा "एयति ) या२४ को पर मने छ तेत्र प्रदेश २४न्धन मे सास 'पित थाय छ भने मे मा ४पित यता नथी. (सिय देसा एयंति नो देसे 'एयइ) ४३४ मे ५ मन छ, न्यारे ते मे मा पित थाय छे અને એક ભાગ કેપિત થતો નથી
હવે ગૌતમ સ્વામી ચાર દેશેવાળા પુદ્ગલ સ્કને વિષે પ્રશ્ન પૂછે છે (चउप्पएसिए ण भंते । खंधे ज्यह?) महन्त शु यार-अहेशवाजप -ગલ કબ્ધ કપિત થાય છે ખરે જ તેને જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે ठे-(गोमया | सिय एयह सिय णो एयइ) 8 गौतम! ते च्यापित थाय छ भने च्या२४ नयी थो (सिय देसे एप्रइ णो देसे एयइ ) ग्यारे
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