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प्रमेयोनिद्रका टीका श०५ १० ७ सू० १ परमाणुपुलस्वरूपनिरूपणम् ४५
छाया-परमाणुपुद्गलः खलु भदन्त ! एजते,व्येजते, यावत्-तं तं भावं परिणमति ? गौतम ! स्याद् एजते, व्येजते, यावत्-परिणमति, १ स्यात्-नो एजते, यावत्-नो परिणमति, २। द्विपदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः एजते, यावत्-परिणमति ? गौतम ! स्याद् एजते, यावत्-परिणमति,१ स्याद् नो एजते, यावद्-नो परिणमति, २ स्यादेशः एजते, देशो न एजते, ३ । त्रिप्रदेशिका
परमाणु पुद्गल विशेष वक्तव्यता
"परमाणु पोग्गले णं भंते !" इत्यादि। सूत्रर्थ-(परमाणु पोग्गले णं भंते ! एयइ, वेयह, जाव तं तं भावं परिणमइ) हे भदन्त ! परमाणुपुद्गल क्यो कंपित होता है ? विशेषरूप से क्यो वह कंपित होता है ? यावत् उसर भावरूप से क्या वह परिणमता है ? (गोयमा) हे गौतम! (सिय एयइ, वेयइ जाव परिणमा सिय णो एयइ जाव णो परिणमइ) परमाणु पुद्गल कभी कंपित भी होता है, कभी विशेषरूप से भी कंपित होता है, यावत् वह उस २ भावरूप से भी परिणमता है। कदाचित् नहीं पता है यावत् कदाचित् नहीं परिणमता है। (दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयइ, जाव परिणमइ ) हे भदन्त । दो प्रदेशवाला स्कन्ध क्यो कंपित होता है ? यावत् उस उस भावरूप से परिणमता है ? (गोयमा) हे गौतम! (सिय एयइ, जाव परिणमइ ) कभी वह कंपित भी होता है, यावत् वह उस २ भावरूप से भी परिणमता है । (सिय णो एयइ, जाव णो परिणमइ )
પરમાણુ પુદ્ગલને વિશેષ ખુલાસે "परमाणु पोग्गलेणं भते!" त्याहि
सूत्राथ-(परमाणु पोगलेण भंते ! एयइ, वेयइ, जाव तत' भाव परिणमइ ? હે ભદન્ત ! શું પરમાણુ યુદ્ગલ સામાન્ય રૂપે કંપે છે? વિશેષ રૂપે કંપે છે ખરું? શું તે ઉક્ષેપણુ-અવક્ષેપણ, નીચે આવવું આદિ ભાવ રૂપે પરિણમે છે? (गोयमा ! सिय एयइ, वेयइ जाव परिणमइ, सिय णो एयइ जाव णो परिणमइ) હે ગૌતમ! કયારેક પરમાણુ પતલ કંપિત થાય છે, ક્યારેક વિશેષ કપિતા પણ થાય છે, અને કયારેક તે તે ભાવરૂપે પરિણમે છે, કયારેક તે કંપિત થતું નથી, વિશેષ કંપિત થતું નથી અને તે ભાવરૂપે પરિણમતું પણ નથી. (दुप्पएसिए णं भंते । खधे एयइ, जाव परिणमइ १) महन्त ! २ प्रदेशपाणे २४५ शुपित थाय छ ? अनेते मा१३थे परिशुमेछ। (गोयमा! सिय एयइ, जाव परिणमइ) 8 गौतम! ४या२४ ते ४पित थाय छ भने त ला३ये परिश्रम छ, (सिय णो एयह, जाव णो परिणमइ ) श्या३३ ते पित