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प्रेमपन्द्रिका टीका श०५३०६२२ गृहपतिभाण्डाग्निं कायस्वरूपनिरूपणम् ३७३ शुभदीर्घायुष्कतायै कर्म प्रकुर्वन्ति वध्नन्ति, इदमत्र बोध्यम्-उपर्युक्तमो चत्यारि अवान्तरसूत्राणि, तत्र प्रथमसूत्रमल्पायुर्विषयकं, द्वितीयं दीर्घायुर्विषयकम् , तृतीयमशुभदीर्घायुविषयकम् , चतुर्थं तु शुभदीर्घायुविषयकमिति ॥ सू० १॥ .
गृहपतिभाण्डा-ग्निकायवक्तव्यताप्रस्तावः मूलम्-" गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्त केइ भंड अवहरेजा, तस्स णं भंते ! तं भंडं गवसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ ? परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणकिरिया, मिच्छादलणवत्तिया ? गोयमा ! आरंभिया किरिया कजइ, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादसण किरिया सिय कन्जइ सिय नो कज्जइ, अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ, तओ से य पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुई भवंति । गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स, कइए भंडे साइज्जेज्जा ? भंडेयसे अणुवणीए सिया। गाहावइस्सणंभंते! ताओ भंडाओ अनुराग होने पर ही वंदना और नमस्कार क्रियो होगी, पर्युपासना भी इसी कारण को लेकर की जावेगी । अतः इस प्रकार की क्रियाओं के करने से जीव को शुभ कर्मों का बंध होता है और अशुभ कर्मों का निरोध होता है । इसी कारण वह दीर्ध शुभायु का बंध करता है । यहां ऐसा समझना चाहिये कि उपर्युक्त सूत्र में चार अवान्तर सूत्र हैंइनमें प्रथम सूत्र अल्पायुविषयक है, द्वितीय दीर्धायु विषयक है, तृतीय अशुभ दीर्घायुविषयक और चतुर्थ शुभ दीर्घायुविषयक है।सू१। તે જ તેમને વંદણ, નમસ્કાર આદિ કરવામાં આવે છે આ પ્રકારની ક્રિયાઓ કરવાથી જીવ શુભ કમેને બંધ કરે છે અને તેને અશુભ કર્મોને નિરોધ થાય છે. તે કારણે તે શુભ દીર્ધાયુને બધ કરે છે. આ સૂત્રમાં ચાર સૂત્રોને समावेश थयेटा छे. (१) मपायु विषय सूत्र (२) हा विषय सूत्र (3) અશુભ દીર્ધાયુ વિષયક સૂત્ર અને (૪) શુભ દીર્ધાયુ વિષયક સૂત્ર, છે સૂ. ૧