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भगवती
ते नार्थेन तथा प्रतिपादितम् ' एवं जाव वेमाणिया एवम् उक्तरीत्या यावत्वैमानिकाः, वैमानिकपर्यन्तं चतुर्विंशतिदण्डकेषु विज्ञेयम् तदेव अपरशब्देन प्रति पाद्यते - ' संसारमंडलं नेयन्वं ' संसारिजीवजातं ज्ञातव्यम् ।। ०२ ।। कुलकुर - तीर्थकरादिवक्तव्यता प्रस्तावः
मूलम् - " जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहेवाले इमीसे ओसप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था ? गोयमा ! सत्त । एवं वेव तित्थयरा तित्थयरमायरो, पियरो, पढमा सिस्सिणीओ चक्कवट्टिमायरो, इत्थिरयणं, बलदेवा, वासुदेवमायरो, पियरो, एएसिं पडिसत्तू जहा समवाए नाम परिवाडीए तहा णेयव्वा, सेवं भंते ! सेवं भंते ! न्ति, जाव- विहरइ " ॥ सू० ३ ॥
छाया - जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे भारते वर्षे अस्याम् अवसर्पिण्याम् समायां क्रति कुलकराः अभवन् ? गौतम ! सप्त । एवमेन तोर्थ कराः, तीर्थकरमातरः, नारक जीवों की वेदना के विषय में ऐसा पूर्वोक्त रूप से कहा है । ' एवं जाव वेमाणिया ' इसी तरह से वैमानिक तक चौधीस दंड कों में जानना चाहिये। इसी बात को 'संसारमंडलं नेघवत्रं ' सूत्रकार ने इन दूसरे शब्दों द्वारा अर्थात् सकल संसारी जीवों को लिये जानना चाहिये ऐसा प्रतिपादित किया है ॥ ०२ ॥
कुलकर- तीर्थकर आदिकों की वक्तव्यता
'जंबुद्दीवे णं भंते ' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - (जंबुद्दीवे णं भंते । दीवे भारहे वासे इमी से ओसप्पिणीए समाए कई कुलगरा होत्था ) हे भदन्त ! इस जंबूद्वीप के भारतवर्ष में
उपदेशहुत उथन में आ भरणे अयु छे. ( एवं जाव वैमानिया ) ४ प्रभा वैभानिठो पर्यन्तना २४ ओमां सभवु मेवात ( संसार मंडलं नेयव्वं ) એટલે કે સકલ સ સ રી જીયોનુ' જાણવુ' એમ સૂત્રકારે પ્રતિપાદન કર્યું છે. સૂર मुस४२-तीर्थ ४२ माहिनी वहुतव्यता
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'जंबु होवेण भंते ! " छत्याहि
सूत्रार्थ - (जंबु हीवेण भंते ! दीवे भारहेवासे इभी से ओसप्पिणीए समाए कद्र कुळगरी होत्या ? ) हे सहन्त ! या जूदियना भारतवर्षभां मा अव