________________
३२६
भगवतीमा भिधमानानि लब्धानि, प्राप्तानि, अभिसमन्वागतानि भवन्ति तत् तेनार्थेन यावत् -उपदर्शयितुम् । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।। सू०१६ ॥
टीका-केवलिनः प्रस्तावात् तद्विशेषश्रुतकेवलिवक्तव्यतामाह-' पभूणं भंते !' इत्यादि । 'पभूणं भंते चउद्दसपुषी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, गयाइं भवंति, से तेणटेणं जाव उपदंसेत्तए) हे गौतम! चतुर्दश पूर्व धारी एक प्रकार की लन्धिद्वारा उत्करिका आदि भेदोंवाले अनन्त द्रव्यों को लब्धकर लेते है, प्राप्त कर लेता है और अभिसमन्वागत कर लेता है। इस कारण मैंने ऐसा कहा है कि चतुर्दश पूर्वधारी यावत् दिखाने के लिये समर्थ है । (सेवं भंते ! सेवं भंते ति) हे गौतम ! जैसा आपने यह कहा है वह सर्वथा सत्य है । हे भदन्त ! वह सर्वथा सत्य है-ऐसा कह कर गौतम स्वामी अपने स्थान पर यावत् विराजमान हो गये।
टीकार्थ-यहां पर केवली का प्रकरण चालू है-अतः केवली के विशेषरूप श्रुत केवली के विषय में सूत्रकार इम सूत्र द्वारा वक्तव्यता का कथन कर रहे हैं । इसमें गौतम गणधर प्रभु से पूछ रहे हैं कि(पभू णं भंते! चउद्दसपुवी) हे भदन्त ! चौदह पूर्व का पाठी श्रुतकेवली क्या इस प्रकार से करने में समर्थ हो सकता है, जो वह (घडाओ घडसहस्सं) एक घट में से हजारघड़ा कों (पडाओ पडसहस्सं) एक माणाईलद्धाई पत्ताई अभिसमण्णागयाइ भवंति, से तेणट्रेण जाव उवद सेत्तए) હે ગૌતમ! ચૌદ પૂર્વધારી એક પ્રકારની લબ્ધિ દ્વારા ઉત્કરિકા આદિ ભેદવાળાં અનંત દ્રવ્યોને લબ્ધ કરી લે છે. પ્રાપ્ત કરી લે છે, વિશેષ રૂપે મેળવી લે છે. તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે ચૌદ પૂર્વધારી એક ઘડામાંથી હજાર વડાનું, એક વસ્ત્રમાંથી હજાર વસ્ત્રનું ઈત્યાદિ પૂર્વોક્ત સમસ્ત વસ્તુઓનું નિર્માણ भश मतावाने सभ डाय छे. (सेत्र भंते ! सेव भंते ! ति) 3 महन्त ! આપે જે કહ્યું તે સર્વથા સત્ય છે. તેમાં શંકાને સ્થાન જ નથી, એમ કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણુ નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી તેમને સ્થાને બેસી ગયા.
ટીકાઈ—કેવલીનું પ્રકરણ ચાલી રહ્યું છે. તેથી આ સૂત્રમાં સૂત્રકાર શ્રત કેવલીનું નિરૂપણ કરે છે–
गौतम ५२ मडावीर प्रभुने मेवा प्रल ४३ छ है (पभूणं भंते ! पदस पुब्बी ) 3 Herd! यौ। धारी श्रुतपक्षी शु. मा प्रमाणे ४१ मतावाने समय छ ?-( घडाओ घडसहस्स) मे घाभांथी । ५४ामा (पडाओ पडसहस्स) समाश्री रावल, (कडाओ कडसहस्स)