________________
3:
भगudiet
टीका - अथ प्रमाणपदार्थ जिज्ञासमानो गौतमः पृच्छति-' से किं तं पमाणे ?' इत्यादि । अथ हे भदन्त ! किम् तत् प्रमाणम् ? कः खलु प्रमाणपदार्थः ? इति प्रश्नाशयः । भगवानाह - ' पमाणे चउब्विहे पण्णत्ते ' इत्यादि । हे गौतम | प्रमाणं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, प्रमाणस्य चत्वारो भेदाः कथिताः तान् भेदानाह - 'तं जहापच्चक्खे, अणुमाणे, ओम्मे, आगमे' तद्यथा - प्रत्यक्षम्, अनुमानम्, औपम्यम्, आगमश्च तत्र प्रमीयते सम्पूर्णतया वस्तु यथार्थरूपेण ज्ञायते अनेनेति प्रमाणम् १ माणे, ओवम्मे, आगमे) प्रत्यक्ष १, अनुमान २, उपमान ३, और आगम ( जहा अणुओगदारे तहा णेयव्व पमाणं, जाव - ( तेण परं नो अन्त्तागमे, नो अनरागमे, परंपरागमे ) जिस प्रकार से अनुयोग द्वार सूत्र में प्रमाण के संबंध में विवेचन किया गया है, उसी प्रकार से यहां पर भी जानना चाहिये । यावत् " तेन परं नो आत्मागमः, नो अनन्तरागमः, परंपरागमः " इस पाठ तक ।
टीकार्थ-प्रमाण पदार्थ को जानने की इच्छावाले गौतम स्वामी प्रभुसे पूछते हैं कि - ( से किं तं पमाणे ) इत्यादि हे भदन्त ! वह प्रमाण क्या है ? अर्थात् प्रमाण पदार्थ क्या है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि ( पमाणे चउच्च पण्णत्ते) गौतम ! प्रमाण चोर प्रकार का कहा गया है । (तं जहा ) प्रमाण के वे चार प्रकार ये हैं- (तं पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, अगमे ) प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम । जिसके द्वारा पूर्णवस्तु यथार्थरूप से जानी जाती है उसका नाम प्रमाण
आगमे ) (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान ( 3 ) उपमान भने (४) भागभ ( जहा अणुओनदारे तहा णेय्व्वं पमाणं, जान-" तेण पर' नो अत्तागमे, नो अणं वरागमे, ( परंपराग मे ) अनुयोग द्वारसां प्रभाणु विषे ने अभा विवेशन अस्वाभां याव्यु ं छे, मे ४ प्रमाणे अहीं पशु समभवु “ तेन परं नो आत्मागमः नो अनन्तरागमः, परंपरागमः " ते विवेचननो या सूत्रा सुधीनेो भागमा વિષયમાં ગ્રહણ કરવા જોઇએ
ટીકા પ્રમાણુ ? પદના ભાવાર્થ સમજવાની ઇચ્છાવાળા ગૌતમસ્વામી भहावीर अलुने या प्रभाये अश्न पूछे छे -" से किं तं पमाणे " हे लहन्त ! अभायु भेटले शु? तेनो भवाम भापता महावीर अबु हे छे " पमाणे घडव्विहे पण्णत्ते' हे गौतम! असा यार प्रहारना उह्यां छे-“ तं जहा " ते थार प्रा। श्मा अभाऐ छे-" त पञ्चक्खे, अणुमाणे, ओत्रम्मे, आगमे " प्रत्यक्ष. અનુમાન, ઉપમાન અને આગ જેના દ્વારા આખી વસ્તુને યથાર્થ રીતે જાણી