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भगवतीसूत्र तद् नो खलु अहं तो देवौ नानामि, कतरस्मात् कल्पाद्धा, स्वर्गाद्वा, विमानादवा, कस्य वा अर्थस्य अर्थाय अत्र हव्यम् आगतो, तद् गच्छामि, भगवन्तं महावीरं वन्दे, नमस्पामि, यावत्-पर्युपासे, इमानिच एतद्रूपाणि व्याकरणानि प्रक्ष्यामि,-इतिकृत्वा एवं संप्रेक्षते संप्रेक्ष्य उत्थया उत्तिष्ठति यावत् -यौव श्रमणो भगवान महावीरः, यावत्-पर्युपास्ते, गौतमइति । श्रमगो भगवान् श्रमण भगवान महावीर के समीप महाद्विवाले यावत् महाप्रभाववाले दो देव प्रादुर्भूत हुए हैं (तं नो खलु अहं ते देवे जागाभि कयराओ कप्पाओ वो, सग्गाओ वा, विमाणाओ वा कस्स वा अस्थस्स अट्ठाए इहं हव्वं आगया तं गच्छामि गं भगवं महावीरं बंदामि, नमसामि, जाव पज्जुवासामि ) मैं उन देवों को जानता नहीं है कि वे किस कल्प से, किस देवलोक से, किस विमान से और किस कारण से यहां पर शीघ्र आये हैं । इसलिये जाऊँ और भगवान महावीर को वंदना करूँ नमस्कार करूँ यावत् उनकी पर्युपासना करूँ, 'इमाई च णे एयाख्याई वागरणोई पुच्छिस्सोमि तिकट्टु एवं संपेहेइ) और इस प्रकार के इन प्रश्नों को उनसे पूछ इस प्रकार से उन्हों ने विचार किया (संपेहित्ता उठाए उठेइ ) विचार कर फिर वे अपनी उत्थान शक्ति से उठे (जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव पज्जुवासइ) और यावत् जहां पर श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां पर आये यावत् उनका पर्युपासना करने लगे। (गोयमालमणे भगवं महावीरं भगवं गोयम
भडा प्रभावयुद्ध में । थया. (तनो खलु अह से देवे जाणामि कयराओ कप्पाओ वा, सग्गाओ वाविमाणाओ वा कस्स वा अत्थस्स अटाए इह हव्वं आगया त गच्छामि ण भगव महावीर वदामि, नमसामि, जाव पज्जुवासामि) હું આ દેવને ઓળખતે નથી તેઓ ક્યા કલ્પમાંથી, કયા દેવલોકમાંથી, કયા વિમાનમાંથી, કયા કારણે અત્યારે અહીં આવ્યા છે, તે હું જાણતો નથી. તે હું ભગવાન મહાવીર પાસે જઉં, તેમને વંદના કરૂં, તેમને નમસ્કાર કરું, तेनी शुश्रूषा ४३, ( इमाइ च णं एयारूबाई वागरणाई पुच्छित्सामि तिकटु एवं सहेइ) मने मा प्रारना मा प्रश्नो तमने पूछ', गोवा तेभर विद्यार ध्या. ( संपेहित्ता उदाए उठेइ) से प्रारनी पियार ४0 ते तेमनी त्यानशनिथी यस. (जाव जेणेव समणे भगव महवीरे जाव पज्जुवासइ) અને જ્યાં મહાવીર પ્રભુ વિરાજમાન હતા, ત્યાં આવ્યા અને વંદણ, નમસ્કાર ४रीने तेभनी पर्युपासना ४२१। साया( गोयमाई! समणे भगवं गोयम एवं.
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