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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०१ सू० १ वायुस्वरूपरिरूपणम् स्वदुक्तं संभवति, गौतमः कारणं पृच्छति-वयाणं भंते ! ईसिंपुरे वाया० ? ' हे भदन्त ! कदा खलु ईपरपुरोवातादो वान्तीति ? भगवान् द्वितीयं हेतुं प्रतिपादयति-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जयाण' यदा खलु 'वाउयाए' चाउकायः 'उत्तरकिरियं ' उत्तरक्रियम् , उत्तरा उत्तरवैक्रियशरीराश्रया गतिस्वरूपा क्रिया यस्मिन् कर्मणि तद्यथा स्यात् तथेति, तथा च वायुकायस्यौदारिकं मूलशरीर, वैक्रियं तु उत्तरशरीरमित्याशयेन तदुक्तम् ‘रियइ' रीयते गच्छति 'तयाण' तदा खलु 'ईसिंपुरे वाया ' ईपत्पुरो वाताः 'जाव वायति ' यावत्-वान्ति, यावत्करणात् 'पथ्या वाताः, मन्दा वाताः, महावाताः' इति संग्राह्यम् । तृतीयहेतुं विज्ञातुं गौतमः पुनः प्रश्नयति-' अस्थिणं भंते ! इसि पुरेवाया०? 'हे भदन्त! अस्ति खलु संभवत्येव यदुत ईषत्पुरोवाताः, पथ्या वाता रोवातवायु आदि वायुएँ चलते हैं,अब इनके चलने में कारण को पूछने के अभिप्राय से गौतम प्रभु से पूछते हैं कि (कया णं भंते ! ईसिंपुरेवाया) हे भदन्त ! ये ईषत्पुरोवात आदि वायुऍ कब चलते हैं ? उत्तर में प्रभु उनसे द्वितीय हेतु को प्रतिपादन करने के अभिप्राय से कहते हैं कि(जया णं वाउयाए उत्तरकिरियं रियइ-तयाणं ईसिंपुरेवाया जाव वा. यंति) हे गौतम ! जिस समय वायुकाय, उत्तर वैक्रिय शरीर के आश्रय भूत गतिक्रिया को करता है-अर्थात्-वायुकाय का मूल शरीर तो औदारिक शरीर होता है-और वैक्रिय शरीर इसका उत्तर शरीर होता है -इस उत्तर शरीर को लेकर जो वायुकाय की गमनक्रिया होती है वह उत्तर क्रिया है । इम उत्तरक्रियो को जब वायुकाय करता है तब ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ चलते हैं। इस कथन से सूत्रकारने ईषत्पुरोवात आदि के रूप से चलने में वायुकायका उत्तरवैक्रिय शरीर कारण कहा है। तृतीय प्रश्न-(कयाणं भंते ! ईसि पुरेवाया, वायंति) 3 महन्त ! ४षाशपात આદિવાયુઓ જ્યારે વાય છે એટલે કે તે વાયુઓના વહનનું બીજું કયુ કારણ છે? उत्तर-( जयाणं) न्यारे (वाउयाए उत्तरकिरिय रियइ, तयाण ईसिंपुरेवाया जाव वायंति) 3 गौतम । न्यारे वायुय, उत्त२ वैठिय शरीरना આશ્રયભૂત ગતિક્રિયા કરે છે–એટલે કે વાયુકાયનું મૂળ શરીર તે દારિક શરીર હોય છે. અને વૈકિય શરીર તેનું ઉત્તર શરીર હોય છે તે ઉત્તર શરીરની અપેક્ષાએ જે વાયુકાયની ગમનક્રિયા થાય છે તેનું નામ જ ઉત્તર ક્રિયા છે. જ્યારે વાયુકાય તે ઉત્તર ક્રિયા કરે છે, ત્યારે ઈષપુરાવાત આદિ વાયુઓ વાય છે. આ રીતે ઈન્સુરે વાત આદિના વહનનું બીજું કારણ વાયુકાયનું ઉત્તર ક્રિય શરીર ગણાયું છે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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