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प्रtraन्द्रिका टीका श० ५ ० सू० १ वायुस्वरूपनिरूपणम्
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वाक्यस्य
'ईसिपुरे बाया ' ईषत्पुरो वाताः ' पच्छा वाया' पथ्या वाताः, 'मंदा वाया मन्दाः वाताः, महा वाया' महावाताः ' वार्यति ?' वान्तीति ? एतत्प्रश्न वक्ष्यमाणवात प्रवहण हेतुत्रयाभिधानस्य प्रस्तावनार्थतया पूर्वोक्तेन सूत्रेण पौनरुत्यं नाशङ्कनीयम् । भगवानाह - - 'हंता, अस्थि ' हन्त, सत्यम्, अस्ति संभवत्येतत् । अथ वक्ष्यमाणवातप्रवहणहेतुं विज्ञातुं गौतमः प्रश्नयति' कयाणं संते ! ' इत्यादि । हे भदन्त ! कदा खलु 'ईसिपुरे वाया० ईषत्पुरो वाता: ' जाव - चायंति ? ' यावत् वान्ति ? यावत्करणात् ' पथ्या वाताः मन्दा वाताः, महावाताः' इति संग्राह्यम् । भगवान् प्रथमहेतुं प्रतिपादयन्नाह - 'गोयमा ! ' वाघा, महावाया, वयंति ) गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! ईषत्पुरोवायु, पथ्यवायु, मंदवायु और महावायु ये चार वायु चलते हैं क्या ? यहां पर ऐसी (आशंका नहीं करनी चाहिये कि यह सूत्र तो पीछे आ चुका है - अतः पुनः यहां पर इस सूत्र को कहने से पुनरुक्ति नाम का दोष आता है) क्यों कि पहिले जो सूत्रकहा गया है वह तो प्रस्तावनारूप से कहा गया है और यहाँ जो यह सूत्र कहा गया है वह इन वायुओं के. हेतुत्रय को बताने के निमित्त ये कहा गया है । अतः भिन्नार्थाभिधायकता होने से यहां पुनरुक्ति दोष की प्राप्ति नहीं होती है।
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अ. तिथ) हां गौतम | ये पूर्वोक्त ईषत्पुरोवायु आदि बायुऍ चलती हैं । अब गौतम इन ईषत्पुरोवायु आदिके चलने में कारणको जानने की इच्छा से प्रभु से पूछते हैं कि (कया णं भंते । ईसिपुरेवाया० जाव वायंति ) भते ! ईसि पुरेवाया, पत्थावाया मंदावाया, महावाया वायति ? " हे अहन्त ! ઋષપુરે વાત, પથ્યવાત, મન્દવાત, ને મહાવાત એ ચારે વાયુએ શું વાય છે ખરાં ? (અહીં એવી આશંકા ન કરવી જોઈએ કે આ સૂત્ર તે આગળ આવી ગયું છે. અને અહી ફીથી એજ સૂત્ર કહેવાથી પુનરુક્તિ દોષ લાગે છે. કારણ કે પહેલાં જે સૂત્ર કહેવામાં આવ્યું છે, તે પ્રસ્તાવનારૂપે કહ્યું છે, અને અહી એ સૂત્ર એ વાયુએની ગતિના ત્રણ કારા બતાવવાને નિમિત્તે કહેવામાં આવેલું છે તેથી ભિન્નાથ્યભિષાયકતા ( જુદા જુદા હેતુઓ ) હેાવાને કારણે અહીં પુનરુક્તિ દોષ લાગવાને સભન્ન નથી ) મહાવીર પ્રભુ તેના ઉત્તર આપતા
छे - ( हंता, अस्थि ) डा. गौतम ! पूर्वोक्त षित्पुरोवायु महि वायुमो वाय छे.
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प्रश्न- (कयाणं भंते ! ईसि पुरेवाया, जाव वायति ) हे लत! ते षित्यु शिवात माहि वायुगो म्यारे वाय छे ? ( अडी (जान) पहथी पथ्यवात, મવાત અને મહાવાત, એ ત્રણ વાયુએ ગ્રહેણુ કરવા જોઇએ),