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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० १ वायुस्वरूपनिरूपणम्
वान्तीत्यर्थः।
पुनीतमः पृच्छति-' अथिणं भंते !' हे भदन्त ! अस्ति सम्भवति खलु यदुत 'सामुद्दगा' सामुद्रिकाः समुद्रसम्बन्धिनः ' ईसिंपुरे वाया० ' ईष
पुरोवातादयो वान्तीति ? भगवानाह-'हंता अस्थि ' हन्त, सत्यम् , अस्ति सम्भवत्येतत् । समुद्रसम्बन्धिनोऽपि ईषत्पुरोवातादयो वान्त्येवेति भगवदाशयः।
गौतमः पुनः प्रकारान्तरेण पृच्छति-'जयाणं भंते ! ' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु 'दीविच्चया' द्वैप्या. 'ईसि पुरेवाया०' ईषत्पुरोवीतादयो वान्ति "तयाणं ' तदा खलु 'सामुद्दया वि.' सामुद्रिका अपि 'ईसिंपुरे वाया०' ईष. पुरोवावादयो वान्ति ? एवं 'जया णं' यदा खलु 'सामुद्दया' सामुद्रिकाः 'इसिपुरे वाया०' ईपत्पुरोवातादयो वान्ति, ' तयाणं' तदा खलु 'दीविच्चया वि' दैप्याः अपि ईसिपुरेवाया' ईपत्पुरो वातादयो वान्ति किम् ! इति प्रश्नाशयः गौतम से कहते हैं कि (हंता ) हां, गौतम ! द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात
आदि वायुएँ चलती हैं। ____ अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं (अत्थि.णं भंते ! सामुद्दगा ईसिं. पुरे वाया०) हे भदन्त ! समुद्रसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, यह बात संभवित होती है क्या ? प्रभु इसके उत्तरमें कहते हैं (हंता अत्थि ) हां यह बात संभवित होती है कि समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते ही हैं । अब गौतम इसी विषयको प्रकारान्तरसे प्रभुसे पूछते हैं कि (जया णं भंते!) जिस समय (दीविच्चया ईसिंपुरे वाया०) बीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं (तया णं) तब क्या (सामुइया वि ) समुद्रसंबंधी भी (ईसिंपुरे वाया०) ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं ? और (जया णं) जब (सामुद्दया ईसिंपुरेवीयो०) समुद्र संबंधी
पन-( अस्थिण भते ) 3 महन्त ! शु. पात समावित छ समु. हंगा ईसिंपुरेवाया" समुद्र समधी पत्पुशवात माल वायुमा पाय छ ?
उत्त२-"हता, अस्थि" । गौतम से पात समावित छ । समुद्र સંબંધી ઈષ~રે વાત આદિ વાયુઓ વાતા હેય છે.
प्रश्न-" जयाण' भते !" उ महन्त ! २ समये "दीविच्चयो ईसिं पुरे वाया." द्वीप संधीषा शवात माहि वायुमा वा डाय छ, (तयाण) ते समये “सामुहया वि ईसिंपरेवाया, "शु समुद्र सभाधी पत्धुरोपात माह वायुमे। पात खाय छ ? भने " जयाण" क्यारे “ सामुद्दयाईसिपुरेवाया " समुद्र समधी ५ युरोपात माहिवायुमा पाताय छे, (तयाण) त्यारे "दीविच्चया वि ईसि पुरेवाया," द्वीपमधी Y Uष-पुरोपात महि વાયુ આ શું વાતા હોય છે ખરાં?
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