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________________ . . . .. २०६४ भगवती पेण परिधिना ताः कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः । गौतमः पृच्छति- कण्हराईओ ण भंते ! के महालियाओ पण्णत्ताओ?' हे भदन्त ! कृप्णराजयः खलु किंमहालया: कियन्महत्या प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीये दीवे, जाव-अद्धमासं वीईवएज्जा' हे गौतम ! यदा कश्चित् महर्दिको यावत्-महानुभावो देवः मध्यमामुष्टसंयोगाभिघातजन्यध्वनिमूचकहस्तव्यापाररूपाः छोटिका ताभिः तिसमिः पूर्ववर्णितमेनं जम्बूद्वीपं द्वीपं यया त्वरितया चपलया वेगवत्या यावत्-दिव्यगत्या एकविंशतिवारान् प्रदक्षिणीकृत्य पुनरागच्छेत् तयैव गत्या निरन्तरम् अधमास यावत् व्यतिव्रजेत् तदो' अत्थेगइयं कण्हराई वीईवएज्जा' अस्ति संभवति यत्जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ) परिक्षेप इन सय का असंख्यात हजार योजनों का है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-(कण्हराईओ णं भंते ! के महालियाओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! ये कृष्णराजियां कितनी बड़ी कही गई हैं ? इसके उत्तर में भगवान् उनसे कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! (अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव अदमासं वीईवएजा) जब कोइ महद्धिक यावत् महानुभाववाला देव तीन चुटकी पजाने में जितना समय लगता है इतने समयरूप काल में पूर्व में वर्णित इस समस्न जंबूदीप को त्वराचाली यावत् दिव्यगति द्वारा इक्कीस बार प्रदक्षिणा देकर आ जावेअब वही देव इसी तरह की अपनी दिव्य गति द्वारा निरन्तर-पन्द्रह १५ दिन तक चलता रहे-तब कहीं जाकर वह (अत्थेगइयं कण्हराई परिक्खेवेण पण्णताओ) भनी परिधि (परिमिति मसभ्यात तर જનની કહી છે. गौतम स्वामी हुवे मे प्रल रे छ है (फहराईओ ण मते ! के महालियाओ पंण्णता भो?) HIdl०५२निसान सी विडी । तन तर मापता भावीर प्रभु ४३ छ-(गोयमा !) 3 गौतम | ( अयण जंधुहीवे दीवे जाव अद्धमासं वीइत्रएज्जा) मे मह माहि વિશેષણોવાળે દેવ, ત્રણ ચપટી વગાડતા જેટલો સમય લાગે એટલા સમયમાં પૂર્વ વર્ણિત (આ ઉદ્દેશકના પહેલા સૂત્રમાં જંબુદ્વીપને વિસ્તાર અને પરિ ક્ષેપ બતાવ્યું છે) સમસ્ત જંબદ્વીપની એકવીસ વાર પ્રદક્ષિણા કરી લેવાને ધારે કે સમર્થ છે. એ તે દેવ પિતાની તે વરાયુક્ત અને દિવ્ય ગતિથી निरन्तर १५ हिवस सुधी याया ४२, तो भडाभुश्ती (अत्थेगहय .. कण्हराई वीइवएन्जा) ४ gogalr सुधा पांथी शो , अटले
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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