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प्रमेयचन्द्रिका टीका ३० ६ ३०५ सू० २ कृष्णरजिस्वरूपनिरूपणम्
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सनत्कुमार- माहेन्द्रयोः कल्पयोः, अत्रो ब्रह्मलोके कल्पे खलु रिष्टेविमानप्रस्तटे अत्र अक्षवाटकसमचतुरस्र संस्थानसंस्थिता अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - पौरस्त्ये द्वे, पाश्चात्ये द्वे, दक्षिणे द्वे, उत्तरे द्व, पौरस्त्याभ्यन्तरा कृष्णराजिः दक्षिणबाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा, दक्षिणाभ्यन्तरा कृष्णराजिः पश्चिमवाह्यां कृष्णराजिं स्पृष्टा, पाश्चात्या
गई हैं ? अर्थात् ये कृष्णराजियां कहां पर हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम! (उपि सणकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं, हिडिं बंभलोए कप्पे अरिट्ठविमा
पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग समचउरंस संठाणसंठियाओ अट्ठ कण्ह राईओ पण्णत्ताओ) ये आठ कृष्णराजियां ऊपर में सनत्कुमार, माहेन्द्रकल्प में और नीचे में ब्रह्मलोककल्प में अरिष्टविमान के पाथडे में हैं। इनका आकार समचतुरस्र - चौकोर - अखाडे के समान है । (तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं - पुरत्थिमेणं दो, पच्चत्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो, पुरस्थित कव्हराई दाहिण - बाहिरं कण्हराई पुट्ठा, पच्चरिथम अंतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराई पुट्ठा, उत्तरमsअंतरा कण्हराई पुरस्थमबाहिरं कण्हराई पुट्ठा) दो कृष्णराजियां पूर्वदिशा में, दो कृष्ण राजियां पश्चिमदिशा में, दो कृष्णराजियां दक्षिण दिशा में, और दो कृष्णराजियां उत्तर दिशा में हैं। इनमें जो पूर्वदिग्भाग के 'भीतर की कृष्णराजि है वह दक्षिणदिग्भाग के बाहिर की कृष्णराजि को छूती है। दक्षिणदिग्भाग के भीतर की जो कृष्णराज है, वह पश्चि
पत्थण अक्खाडग
सहन्ते ! ते आठ कृष्णुरानियो भ्यां मावेसी छे ? ( गोयमा ! ) हे गीतभ ! ( उपसणं कुमारमाद्दिदाणं कप्पाणं, हिट्ठि बंभलोए कप्पे अरिट्ठविमाणपत्थडे, समचउर गसंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ) તે આઠ કૃષ્ણરાજિ ઉપરની બાજુએ સનત્કુમાર અને માહેન્દ્ર દેવલેાકમાં અને નીચે બ્રાલેાક કલ્પના અરિષ્ટ વિમાનના પાથડામાં (વિમાન પ્રસ્તટમાં) तेनो माअर समन्यतुस्र-यतुष्ठ भाडाना नेवा छे. ( त जहा ) ते भा अभाशे आवेली छे - (पुरस्थि मेण दो, पञ्च्चत्थिमेण दो, दाहिणेण दो, उत्तरेण दो ) એ કૃષ્ણરાજિઆ પૂર્વ દિશામાં, એ કૃષ્ણરાજિએ પશ્ચિમ દિશામાં, એ કૃષ્ણशन्नियो दृक्षिण दिशामा भने मेष्णुरात्रि। उत्तर दिशाभां छे (पुरत्थिम
तरा कण्हराई दाहिण - बाहिर कण्हराई पुद्रा, पच्चत्थिमभतरा कण्हराई उत्तरवाहिर कव्हराइ पुट्ठा, उत्तरमव्भतरा कण्हराई पुरत्थिमबाहिर कण्डराइ पुट्ठा) तेमांनी ने पूर्व हिग्लागनी अहरनी मृट्युशन छे, ते दक्षिण દિગ્બાગની બહારની કૃષ્ણરાજિને સ્પર્શે છે, દક્ષિણ દિગ્બાગની અંદરની જે
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