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________________ सुधा टीका स्था०४ उ०४ सू०२४ कुंभटान्तेन पुरुषजातनिरूपणम् ક " एवामेव चत्तारि पुरिसजाया" इत्यादि - एवमेत्र - उक्तकुम्भनदेव पुरुषजातानि चत्वारि प्रज्ञप्तानि तद्यथा- मधुकुम्भो नामैको मधुपिधानः १, मधु कुम्भो नामैको विपपिधानः २, विषकुम्भो नामैको मधुपिधानः ३, विपकुम्भो नामैको विषपिधानः ४ । एतद्भङ्गचतुष्टयस्यार्थ गाथाचतुष्टयेन विशदयति" हिययमपाव " मित्यादि, आसां मूलोक्तानां चतसृणां गाथानां व्याख्या सुगम ||२४|| होता है, और मधुके विधान-ढक्कन वाला होता है ३ । तथा कोई एक कुम्भ ऐसा होता है जो विषसेही भरा रहता है और विषकेही ढक्कनवाला 'होता है ४ है " एवामेव चत्तारि पुरिसजाया" इत्यादि इसी तरहसे पुरुषजात -भी चार कहे गये हैं- जैसे कोई एक पुरुष ऐसा होता है, जो लधुकुम्भ के जैसा होता है, और मधुपिधान - ढकनवाला होता है १ । कोई एक पुरुष ऐसा होना है - जो मधुकुम्भ जैसा होता हुआ भी विष विधान वाला होता है २ । कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो विषकुम्भ जैसा होता हुआ भी मधुपिधान वाला होता है ३। और कोई एक पुरुष ऐसा होता है, जो विषकुम्भ जैसा होता है और विषपिधानवाला होता है इन चार भङ्गोका 'अर्थ' 'हिययमपाचमकलुस' इन गाथाओं द्वारा इस प्रकार से विशद किया गया है - जिस पुरुषका हृदय पापरहीत और कलुषताहीन होता है, और जिहा जिसकी मधुर भाषिणी होती है वह पुरुष मधु पिधानवाले मधुकुम्भके जैसा कहा गया हे १ हिययमपावमकलु जीहावि इत्यादि जिसका हृदय पापविहीन और कलुषताहीन होता है परन्तु जिह्वा जिसकी कटुकभाषिणी होती है वह विषपिधानवाले मधुकुम्भके जैसा कहा C ९ છે, પણ મધથી ભરેલુ' પાત્ર તેના પર ઢાંકણા રૂપે રહેલુ હોય છે. (૪) કાઈ એક કુંભ વિષથી ભરેલા હાય છે, અને તેનું ઢાંકણું પણુ વિષપૂર્ણ પાત્ર જ હાય છે. " एवमेव चत्तारि पुरिसजाया " त्याहि-- मे ४ प्रमाणे पुरुषाना पशु ચાર પ્રકાર કહ્યા છે. (૧) કાઇ એક પુરુષ મધુકુંભ સમાન હોય છે અને મધુપિધાન ( મયુક્ત ઢાંકણાવાળા ) વાળા હાય છે. જે પુરુષનું હૃદય પાપહીન અને કલુષતાહીન હોય છે અને જેની જીભ મધુરભાષિણી હાય છે એવા પુરુષને મધુપિધાનયુક્ત મધુકુલ સમાન ગણવામાં આવે છે (૨) કાઇ એક પુરુષ એવા હોય છે કે જે મધુકુલ સમાન હોવા છતાં પણ વિશ્વવિધાનવાળા હાય છે. જે માણસનું હૃદય પાપહીન અને કલુષતાહીન હાય છે, પણ જેની વાણી કડવી અથવા અપ્રિય લાગે છે એવા પુરુષને વિષપ ધાનવાળા મધુકુંભ સમાન કહ્યો છે.
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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