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________________ सुधा टीका स्था० ४ १०४ सू०१४ चतुष्पद-पक्षी-डंद्रप्राणिनिरूपणम् ३३९ " चउबिहा एक्खी" इत्यादि-पक्षिणश्चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-चर्म पक्षिणः-चममयपक्षसहिताः-बल्गुलीप्रभृतयः १, तथा-लोमपक्षिणः-लोमयुक्तपक्षवन्तः-इंसादयः २, समुद्गकपक्षिणः-समुद्कौ-सम्पुटंको ताविव पक्षी येषां ते तथा-सम्पुटकयुक्तपक्षसहिताः, तथा-विततपक्षिणः-विस्तृतपक्षयुक्ताः, अन्तिमा उभयेऽपि समयक्षेत्रतो बहिरेव भवन्ति । (३५)। " चउचिहा खुड्डपाणा" इत्यादि-क्षुद्रप्राणाः-प्राणन्तीति प्राणाः क्षुद्राश्च ते पाणाः क्षुद्रप्राणाः अधमप्राणिना, अनन्तरभवे सिद्धिगमनाभावात्, चतुर्विधा प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-द्वीन्द्रियाः-इन्द्रियद्वयवन्तः कम्यादयः १, तथा-त्रीन्द्रिया:इन्द्रियत्रयवन्तः-पिपीलिकादयः २, चतुरिन्द्रिया:-इन्द्रियचतुष्टयवत्तो भ्रमरादयः ३, सम्मूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः-सम्मूछेनं सम्मूछः, तेन नित्ताः पक्षी चार प्रकारके कहे गये हैं जैसे-चर्मपक्षी १ लोमपक्षी २ समु. द्वकपक्षी ३ और विततपक्षी ४ (३५) चर्ममय पक्ष (पंख) सहित जो पक्षी होते हैं, वे चर्मपक्षी हैं जैसे-चमगादड़ वगैरह । लोमयुक्त पांखोंवाले जो पक्षी होते हैं वे लोमपक्षी हैं जैसे-हंस आदि । सम्पुटके जैसे पंख जिनके होते हैं, वे समुद्रक पक्षी हैं और जो विस्तृत (फैले हुए) पांखोंवाले पक्षी होते हैं, वे विततपक्षी हैं । ये समुद्गकपक्षी और विततपक्षी ये दोनों अढाई द्वीपके बाहरही होते हैं (३५) __ " चउविवहा खुड्डपाणा" इत्यादि-अधम प्राणी जो चार प्रकारके कहे गयेहैं अनन्तर भवमें इन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं होती है इसलिये इन्हें क्षुद्रप्राणी कहा गया है, इनके चार प्रकार ये हैं दीन्द्रिय जीव जैसे-कृमी आदि जीव१ तेइन्द्रिय जीव जैसे-पिपीलिका (कीडी) आदिजीवर चौइ. न्द्रियजीव जैसे भ्रमर आदि जीव ३ और संच्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च ४ पक्षीना यार २ ४ा छ-(१) यमपक्षी, (२) बामपक्षी, (3) સમુદક પક્ષી અને (૪) વિતતપક્ષી. ચર્મમય પાંખવાળા પક્ષીને ચમ પક્ષી કહે છે, જેમકે ચામડચિડિયું, લેમથી યુક્ત પાંખવાળા પક્ષીને લેમપક્ષી કહે છે, જેમકે હંસ આદિ પક્ષી. સંપુટના જેવી પાંખેવાળા પક્ષીને વિતતપક્ષી કહે છે તે સમુગ્દકપક્ષી અને વિતતપક્ષી અઢી દ્વીપની બહારના પ્રદેશમાં જ હોય છે ૩યા "उन्विहा खुडुपाणा" त्या:-क्षुद्र छया२ ४२ xa छे. અનન્તર ભવમાં તેમને સિદ્ધિ ગતિની પ્રાપ્તિ થતી નથી. તે કારણે તેમને ક્ષુદ્ર કહ્યા છે. તેમના ચાર પ્રકાર નીચે પ્રમાણે છે-(૧) કીન્દ્રિય જીવ-કૃમી આદિ જ, (૨) ત્રિીન્દ્રિય જી-જેમકે કીડી વેગેરે જી, (૩) ચતુરિન્દ્રિય - જે-જેમકે ભમરે (૪) સમૂછિમ પચેન્દ્રિય તિર્યચ. સંપૂર્ણન જન્મથી
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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