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________________ सुधा टीका स्था० ४ उ०३ सू० ३ सदृष्टान्तं पुरुषजातनिरूपणभू वृक्षसमानः १, पुप्पोपगक्षसमानः २, फलोपगवृक्षसमानः ३, छायोपगवृक्षसमानः ४।।०३। ___टीका-" चत्तारि रुखा" इत्यादि-स्पष्टम् , नवरं-पत्रोपगः-पत्राण्युपगच्छति-प्राप्नोतीति पत्रोपगः-पत्रयुक्तः, एवं पुष्पोपगादयस्त्रयः ४। " एवामेव" इत्यादि-एवमेव-पत्रोपगादि वृक्षवदेव पुरुषजातानि चत्वारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथापम्रोपगवृक्षसमानः १, पुप्पोपगवृक्षसमानः २, फलोपगवृक्षसमानः ३, छायोपगड क्षसमानः ४। पत्रोपगादिवृक्षसमानत्वं लौकिकानां लोकोत्तराणां च पुरुषाणां संभवति । तत्र लौकिकपक्षे-यथा पत्रोपगक्षः पत्रमात्रेण जनमुपकरोति तथैव तत्स. मानः पुरुषो वचनमात्रेण जनमुपकरोतीति प्रथमः १। पुष्पोपगवृक्षो यथा पुष्पेण और-कोई एक छायोपग होता है, ४ । इसी प्रकार से पुरुषजात चार कहे गये हैं, जैसे-कोई एक पुरुष पत्रोपग वृक्ष समान होता है, १ कोई एक पुष्पोपग वृक्ष समान होना है, २ कोई एक फलोपग वृक्ष समान होता है, ३ और कोई एक पुरुष छायोपग वृक्ष समान होता है, ४ । इस सूत्रका तात्पर्य ऐसा है कि कोई एक वृक्ष ऐमा है जो पत्रोपग पत्रों से युक्त होता है, १ कोई एक वृक्ष पुष्पोपग-पुष्पोंसे संयुक्त होता है, २ कोई एक वृक्ष ऐसा होता है जो फलोपग, फलों से युक्त होता है, ३ और-कोई एक वृक्ष ऐसा होता है जो छायोपग-छाया से युक्त होताहै, ४ इनके समान चार पुरुष होते हैं इसका तात्पर्य है कि-कोई एक लौकिक पुरुष ऐसा होता है जो, पत्रोपग वृक्ष समान होना है, अर्थात्जैसे पत्रोपा वृक्ष केवल अपने पत्रों से ही जन-उपकार करता है उसी प्रकार पुरुष भी केवल वचन से ही जनों का उपकार करता है, १ पुष्पोंઅને (૪) કોઈ વૃક્ષ છાપગ હોય છે એ જ પ્રમાણે પુરુષ પણ ચાર પ્રકારના હોય છે. (૧) કોઈ પુરુષ પપગ વૃક્ષ સમાન હોય છે, (૨) કોઈ પુપોપગ વૃક્ષ સમાન હોય છે, (૩) કોઈ ફલેપગ વૃક્ષ સમાન હોય છે અને (૪) કોઈ છાપગ વૃક્ષ સમાન હોય છે. : -। सूत्रना भावार्थ नीय प्रमाणे छे. (१) ओ मे वृक्ष पानथा યુક્ત હોય છે. (૨) કોઈ વૃક્ષ પુષ્પોથી યુક્ત હોય છે, (૩) કોઈ વૃક્ષ ફલેથી યુક્ત હોય છે અને (૪) કોઈ વૃક્ષ છાયાથી યુક્ત હોય છે. વૃક્ષની જેમ પુરુષે પણ ચાર પ્રકારના હોય છે. (૧) પપગ વૃક્ષ સમાન પુરુષ–જેમ પત્રો પગ વૃક્ષ પિતાના પાન વડે જ લેક પર ઉપકાર કરે છે, એ જ પ્રમાણે કે એક લૌકિક પુરૂષ પોતાની વાણું દ્વારા જ લોકેનું ભલું કરે છે.
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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