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________________ स्थाना __" चत्तारि मेहा " इत्यादि-स्पष्टम् , नवरम्-एको मेघः क्षेत्रवीक्षेत्रेधान्याद्युत्पत्तिस्थाने वर्पतीत्येवं शीलः क्षेत्रवपी भवति किंतु नो अक्षेत्रवर्षी क्षेत्रभिन्नप्रदेशे वर्पणकारी न भवति इति प्रथमः १। तथा-एकः अक्षेत्रवर्षी न तु क्षेत्रवर्षी ति द्वितीयः २। तथा-एका क्षेत्राक्षेत्र वपीति तृतीयः ३, एको नो क्षेत्रवर्षी नो अक्षेत्रवर्षी ति चतुर्थः।४। (९) 'एवमेव ' इत्यादि-एवमेव पुरुपजातानि चवारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-एकः पुरुपः क्षेत्रवर्षी -क्षेत्रे-पात्रे वर्पति-दानश्रुतादिनिक्षिपतीत्येवंशीलस्तथा भवति, नहीं होता है २ तथा कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो काल अकाल दोनों अवसरों पर वरसनेवाला होता है ३ तथा कोई एक पुरुप ऐसा होता है जो न कालवर्षी होता है और न अकालवी होता है ४ (८) फिरभी--" चत्वारि मेहा" इत्यादि-मेघ चार प्रकारके होते हैं जैसा-कोई एक मेघ ऐसा होता है जो क्षेत्रमें-धान्यादि उत्पत्तिके स्थानभूत खेतमें वर्षी-बरसनेके स्वभाववाला होता है अक्षेत्रवर्षी नहीं होता है, क्षेत्रले भिन्न प्रदेशमें बरसनेके स्वभाववाला नहीं होता है ? तथा कोई एक मेघ ऐसा होता है जो अक्षेत्रवर्षी होता है. क्षेत्रवर्षी नहीं होता है २ तथा कोई एक मेघ ऐसा होता है जो क्षेत्र और अक्षेत्र इन दोनोंमें वरसनेके स्वभाववाला होता है ३। तथा कोई एक मेघ ऐसा होता है जो क्षेत्र और अक्षेत्र इन दोनों में भी वरसने के स्वभाव वाला नहीं होता है (४) ९ इसी प्रकारसे पुरुष भी चार प्रकारके कहे गये हैं-जैसे कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो क्षेत्रवर्षी होता है क्षेत्रमें-पात्रमें दान, श्रुत आदिका निक्षेपण करકરનારે હેત નથી. (૩) કોઈ પુરુષ એ હોય છે કે જે કાલવ પણ હોય છે અને અકાલવણ પણું હોય છે (૪) કોઈ પુરુષ એ હોય છે કે જે કલિવષી પણ હોતો નથી અને અકાલવવી પણ હેતે નથી. ૫૮ "चत्तारि मेहा" छत्याहि-मेघना नाय प्रमाणे यार । ५९ ४ह्या છે-કઈ મેઘ એવો હોય છે કે જે ક્ષેત્રમાં-ધાન્યાદિ ઉત્પન્ન કરનારાં ખેતરોમાં વરસનારે હોય છે, પણ અક્ષેત્રમાં–વેરાન-પ્રદેશમાં વરસનાર હોતો નથી. (૨) ઈ મેઘ અક્ષેત્રવષી હોય છે પણ ક્ષેત્રવષી હેત નથી. (૩) કઈ મેઘ ક્ષેત્રવષી પણ હોય છે અને અક્ષેત્રવર્ષ પણ હોય છે. (૪) કઈ મેઘ ક્ષેત્રવથી પણ હોતો નથી અને અત્રવથી પણ હોતો નથી એજ પ્રમાણે પુરુષના પણ નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર કહ્યા છે-(૧) કઈ એક પુરુષ ક્ષેત્રવવી હોય છે પણ અક્ષેત્રવવી હોતો નથી. એટલે કે
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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