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________________ १६८ स्थानान पुरुषजातानि मज्ञप्तानि तद्यथा - जातिसम्पन्नो नामको नो कुलसम्पन्नः १ | 9 एवं चतुङ्गी बोध्या । (३) पुनः कन्थकदृष्टान्त मूत्रम् " चत्तारि कन्धगा " इत्यादि — चलारः कन्यकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-जातिसम्पन्नो नामैको नो वलसम्पन्नः १, बलसम्पन्नो नामैको नो जातिसम्पन्नः २, एक जातिसम्पन्नोऽपि बलसम्पन्नोऽपि ३, एको नो जातिसम्पन्नो नो वलसस्पन्नः । ४ । एते सुगमाः ( ४ ) अथ पुरुषजातदान्तिकसूत्रम् - " एवामेव चत्तारि पुरिसनाया " इत्यादि - एवमेव - अनन्तरोक्तकन्यकत्र देव चत्वारि पुरुषजातानि मज्ञप्तानि तद्यथा-जातिसम्पन्नो नामैको नो वलसमनुष्य ऐसा होता है जो जाति सम्पन्न हुआ भी कुलसम्पन्न नहीं होता है १, कोई एक कुलसम्पन्न होने पर भी जाति सम्पन्न नहीं होता है २, कोई एक जाति सम्पन्न भी होता है और कुल सम्पन्न भी होता है ३ और कोई ऐसा होता है जो न जातिसम्पन्न होता है और न कुलसम्पन्न भी होता है (४) चतुर्थ सूत्रगत जो कन्थक चार प्रकार कहे गये हैं उनका सारांश ऐसा है कि कोई कन्थक ऐसा होता है, जो जाति सम्पन्न होने पर भी चल सम्पन्न नहीं होता है १, कोई एक ऐसा होना है जो चलसम्पन्न होने पर भी जातिसम्पन्न नहीं होता है २, कोई एक ऐसा होता है जो जाति सम्पन्न भी होना है और चल सम्पन्न भी होता है ३, तथा कोई एक कन्धक ऐसा भी होता है जो न जातिसम्पन्न होता है और જાતિસ પન્ન હાય છે પણ કુલસંપન્ન હાતેા નથી (૨) કાઇ પુરુષ કુલસંપન્ન હાય છે પણ જાતિસંપન્ન હેાતા નથી (૩) કેાઈ પુરુષ જાતિસ’પન્ન પણ હાય છે અને કુલસ'પન્ન પણ હાય છે (૪) કૈાઇ પુરુષ જાતિસંપન્ન પણ હોતા નથી અને કુલસ'પન્ન પણ હાતા નથી ચેથા સૂત્રમાં કન્થક અશ્વના જે ચાર પ્રકાર કહ્યા છે તેનું સ્પષ્ટીકરણુ नीचे प्रभाछे (૧) કાઇ એક કન્થક એવા હાય છે કે જે જાતિસ ́પન્ન હોય છે પણ અલસપન્ન હતેા નથી (ર) કૈાઇ એક કન્થક એવા હાય છે કે જે મલસપન્ન હાય છે, પણ જાતિપ્ત પન્ન હેાતે નથી (૩) કેાઇ એક કન્થક એવે હાય છે કે જે જાતિસ’પન્ન પણ હાય છે અને ખલસ'પન્ન પણ હાય છે. (૪)
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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