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पाहता मारियानमतिम नारकिनीयः सदा हप्पक्षवानेव भाति-तथा
विदुर्जना भवनि सम्यक्त प्राप्तिरपि दुर्लगा भवतीत्यर्थः, ने एनस्तानम् 'मारिर' जमार्यम् अकेले जाव अमजदुक्यहीम. को मोरा-सानादिनम् अपरिपूर्णम्-अन्यायकम् अशुदम् अशल्पकत कर मिदिम न किमागम् अनिमार्गम् अनिर्माणमार्गम् , नया-असन दुःशी माग, मवाना नर पिनाशो न भवति । 'एगंतमिच्छे' एकान्तको नियमानुपाच-अमोमनम् 'पढमस्स' प्रथमस्य 'ठाणस्स' स्थानस्य AAR क्षण 'विमंग पामाहिए' विमा एवमाख्यातः, अनेन महा यानस्य पतास्य विचारोऽभूदिति ॥५०२२=३७॥
म्यम्-अहावरे दोचरम टागस्त धम्मपाखस्स विभंगे एव. मादिन इह बलु पाईणं वा ४ संतगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-अगाभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिटा जाप धम्मेण व वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुम्पटियागंदा मुसाहलवाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावजीवाए जारजे यावन्न तहपगारा मावज्जा अवोहिया कम्मंता परपाणपरियाग करजंनि तभी विपडिविरया जावजीवाए। ने जनाए अणगाग भगवंतो ईरियासमिया भातासमिया *य ज्ञान नहीं है, अपरिपूर्ण है, अन्याय मय है, भशुद्ध है,
धानबारने वाला नहीं है, सिद्धि मुक्ति निर्माण पनि गहामार्ग न ई समान ना नाश मान नहीं है। बाद स्थान एकान्त मिन न , या प्रधान अधर्म पक्षका विचार ॥२२॥