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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थः -- आर्द्रको गोशालकं घत्याह- महावीरस्वामी (जो काम किच्चा) नो कामकृत्यः - जो कामकृत्यं निष्प्रयोजनं कार्य न करोति (ण यो बालकिच्चा) न च बालकृत्यः-न वा बालक वदविचारितं कर्म करोति, न वा - (रायामिओगेग ) राजाभियोगेन - राज्ञ आज्ञयाऽपि न करोति (कुओ भएणं) कुतो भयेन - भयेन कथं वदेत् अर्थात् रमादपि भयान पदवीत्यर्थः किन्तु - ( सकाम कच्चे णिड आयरि याणं) स्वकामकृत्ये नेह ऽऽचार्याणाम्-रवेच्छाचारितया स भगवान् इह-जगति आर्या तथा उपार्जितीर्थकर नामकर्मणः क्षपणाय च धर्मोपदेशं करोति, (पसिणं ६०० 'ण य बालकिच्चा - न च बालकृत्यः' न बालक के समान बिना विचारे ही कोई कार्य करते हैं । 'न वा राधाभिओगे- न वा राजाभियोगेन' वे राजा के भय से भी धर्मका उपदेश नहीं करते हैं कुओ भएणं भयेन कुतः' तो दूसरे के भले तो उपदेश करेंगे ही कैसे ? 'सकाम किच्चे जिह आरियाणं- स्वकाम कृत्येनेहाणां भगवान् उपार्जित किये हुए तीर्थकर नाम कर्मका क्षय करने के लिये आर्य जनों को उपदेश देते हैं, अथवा 'परिणं विद्यागरेज्या-प्रश्नं व्यागृणीपात्' - अथवा निरवद्य प्रश्नका उपदेश देते हैं, सावध प्रश्न का उत्तर नहीं देते हैं | जा० १७॥ अन्वयार्थ --मुनि आर्द्रक उत्तर देते हैं भगवान् महावीर न निष्प्र योजन कोई कार्य करते हैं और न बालक के समान विना विचारे कोई कार्य करते हैं । वे राजा के भय से भी धर्म का उपदेश नहीं करते हैं तो दूसरे के भय से तो उपदेश करेंगे ही कैले ? भगवान् उपार्जित उरता नथी.. 'ण वा रायाभियोगेण न वा राजाभियोगेन' तेथे। राना उरथी पशु ं धर्मने। उपदेश करता नथी. 'कुओ भरणं भयेन कुत' तो पछी पीलमोना डरथी तो उपदेश ४२वानी वात ४ यां नही ? 'सकाम किच्चे णिह आरियाणं- स्वकामकृत्येनेाऽर्याणाम्' भगवान् उपात रवामां आवेला तीर्थ ४२ નામકર્મના ક્ષય કરવા માટે આ પુરૂષાને ઉપદેશ આપે છે. અથવા ‘વધિમાંં वियागरेज्जा - प्रश्न व्यागृणीयात् निराधे प्रश्नोनो उत्तर खाये छे, सावद्य પ્રશ્નોના ઉત્તર આપતા નથી, પ્રગા૦૧૭મા અન્વયા —આકમુનિ ઉત્તર આપતા કહે છે, કે—ભગવન્ મહાવીર સ્વામી પ્રત્યેાજન વિના કૈાઈ કાર્ય કરતા નથી. તેમજ ખાલકની માફક વગર વિચાયુ કઈજ કાર્ય કરતા નથી. તેએ રાજાના ભયથી ધર્માંને ઉપદેશ કરતા નથી તે। પછી બીજા ફાઈના ભયથી તે ઉપદેશ કેમ કરે? ભગવાન ઉપા -
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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