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________________ ६३८ सूत्रकृताइसूत्रे २०८ जे इह सायाणुगा नरा अज्झोववन्ना कामेहि मुच्छिया ९ १० १४ १२ १५ १३ ११ किवणेण समं पगमिया न वि जागति समाहिमाहित॥४। छाया य इह सातानुगा नरा अध्युपपन्नाः कामेषु मूच्छिताः । कृपणेन समं प्रगभिता नापि जानन्ति समाधिमाख्यातम् ॥४॥ अन्वयार्थ:(इह) इहलोके (जे नरा) ये नराः (सायाणुगा) सातानुगाः= सुखशीलाः (अज्झोववन्ना) अध्युपपन्नाः =ऋद्धिरससातगौरवेपु गृद्धाः, तथा (कामेहिं) कामेषु = शब्दादिपु (मुच्छिया) मूच्छिताः (किवणेण) कृपणेन इन्द्रियपराजितेन(सम) शब्दार्थ-'इह-इह' इसलोकमें 'जे नरा-ये नराः' जो मनुष्य 'सायाणुगा सातानुगाः' सुख के पीछे चलते हैं 'अज्झोववन्ना-अध्युपपन्नाः' तथा ऋद्वि रस और साता गैरवमें आसक्त है एवं कामेहि-कामेषु शब्दादि काममोगों में मुच्छिया-मूच्छिताः' आसक्त है 'किवणेण-कृपणेन । वे इन्द्रिय लंपटों के 'समं-समम्' समान् 'पगभिया-प्रगल्भिताः' धृष्टता पूर्वक कामभोगका सेवन करते हैं 'अहियंपि-आहितमपि' ऐसे लोग कहने पर भी 'समाहि-समाधिम् समाधि धर्मध्यानको 'न-न' नहीं 'जाणंति-जनन्तीति' जानते हैं ॥४॥ -अन्वयार्थ:इस लोक में जो मनुष्य सुखशील आरास चाहने वाले होते हैं, ऋद्धि रस और साता के गौरव में आसक्त हैं तथा शब्दादि कामभोगो में मूर्छित हैं, शा- 'इह-इह' मा सोभा जे नरा-ये नरा'ने मनुष्य 'सायाणुगा-साता. नुगाः' सुमनी पाछ या छ 'अज्झोववन्ना-अध्युपपन्ना' तथा ऋद्धिरस गमन साता गैरवमा सासरत छ मेवम् 'कामेहि -कामेपु' शण्ट पोरे अमलागीमा 'मुच्छियामूच्छिता' मासरत छ 'किवणेण कृपणेन' ते धान्द्रय ८ पटोना 'सम -समम्' समान 'पगभिया-प्रगल्भिता' टतापू: आमलोगनु सेवन ४२ छ 'अहिय पि-आहितमपि' मावा सो ४ा छता ५४ 'समाहि-समाधिम्' समाधि-मध्यानने 'न-न' नथी 'जाण ति-जानन्तीति' andu ॥ ४ ॥ -सूत्राथઆ લેકમ જે મનુએ સુખશીલ આરામને પસન્દ કરનારા હોય છે ઋદ્ધિ, રસ અને સાતાના ગૌરવમા આસક્ત છે, તથા શબ્દાદિ કામગોમાં મૂર્ણિત છે, તેઓ કૃપણાના
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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