________________
सूत्रकनाङ्गसूत्र
संबुकम्मस्म भिक्खुणो जं दुबय पुढे अबोहिए। तं संजमओऽवचिजई मरण हिच्चा बर्थति पंडिया॥१॥
१०
छायासंवृतकर्मणो मिक्षोः यदःखं स्पृटमयोधिना। नत्संयमतोऽपचीयन मरणं हित्वा ब्रजन्ति पण्डिताः ॥१॥
अन्वयार्थः-- (गंड कम्मम्म) संवृत करणः निरुद्धाश्रवद्वारस्य (भिक्ग्युणो) भिक्षोः साधोः (प्रोटिप) अयोधिना=अनानवशेन (ज) यत् (दुक्खं) दुख तज्जनकमष्टविध कर्म वा
भन्दाय-यं उकम्मम्स-संवृनकर्मणः' आट प्रकारके कर्मों का आगमन जिमने रोकदिया है। ऐसे 'मिवणो-भिक्षोः' साधुको नया 'अयोहिए-अयो पिन अजान बसे 'ज-यन्' जो दुक्ख-दुःखम्' दुःख 'पुटुं-स्पृष्टम्' बंधा है 'नं-न यः दुःख मनमो-संयमत:' सतरह प्रकारके संयम से 'माचिजद -अपचायने प्रतिक्षण क्षीण हो जाता है और 'पंडिया- पंडिताः' वे गडिन पुरुप अमीन् मन् अपन के विवेक वाला पुरुप 'मरणं हिच्चा- मरणं हिमा गा को छोड कर 'वयंति-वजन्ति' मोक्षको प्राप्त करते हैं ॥१॥
अन्वयार्थ पाहा को रोक देने वाले माधु के अनान के कारण बंधे हुए या निकाचिन पाय अथवा आटकर्म भगवान के कहे सतरह प्रकार के संयम से
14. REETER-वृत कर्मण' 6 आना भानु गमन
, मायणो-मिओ' माथुने तथा 'अयोहित-अबोधिना' गानान ५.१५॥ - 'दुरप-दुगम 'पुट स्पृटम' मधेस 'त-तत्' ते दु.॥ 'म मगन र मना नया 'बचिजइ-अपीयते' ६२४ा शीएy
१५ पटिया-पशिता ने ५ १३५ गात पन्य सत्यनाविणा 1. arer हिमा-गर.7 हित्यामानान वयनि-व्रजन्ति' मोक्ष प्राप्त
पुत्रार्थ
4
...... ... ..
: नियत यया मा प्रधाना गाना गाश्रय . वामगारना यमनु पावन साथी