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________________ समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु अ. २ उ. २ स्यपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ५७५ - उपदेशान्तरं पुनः प्रस्तौति सूत्रकारः-' उवणीयतरस्स' इत्यादि । । मूलम्--- : १ "उवणीयतरस्स ताइणो भजमाणस्स विविकमासणं। "१० ११ १२. सामाइयमाह तस्स जं जो अप्पाणं भए ण दसए ॥१७॥ -छाया । उपनीततरस्य नायिणः भजमानस्य विविक्तमासनम् । सामायिकमाहुस्तस्य यद्य आत्मानं भये न दर्शयेत् ॥१७॥ अन्वयार्थ:- (उवणीयतरस्स) उपनीततरस्य स्वात्मानं ज्ञानादिसमीपे उपस्थापितस्य (ताइणो) त्रायिणः परोपकारिणः पङ्कजीवनिकायरक्षकस्य वा (विविकमासणं) सूत्रकार पुनः उपदेश करते हैं-" उचणीयतरस्स" इत्यादि । ! शब्दार्थ-'उवणीयतरस्स-उपनीततरस्य' जिसने अपने आत्मा को ज्ञान आदि के समीप पहुंचा दिया है 'ताइणो-त्रायिणः' तथा जो अपना और पर का उपकार करता है अर्थात् पट्जीवनिकाय का रक्षण करता है 'विविकमासणं-विविक्तमासनम् स्त्री, नपुंसकर्जितस्थान को 'भजमाणस्स-मजमानस्य' सेवन करता है 'तस्स-तस्य ऐसे मुनिका सर्वज्ञोंने 'सामाइयमाहुसामायिकमाहुः'-सामायिक चारित्र कहा है 'ज--यत्' इसलिये 'अप्पाण-आत्मान' आत्मा में 'भए ण दसए-भये न दर्शयेत्' भय प्रदर्शित नहीं करना चाहिए ॥१७॥ अन्वयार्थजिसने अपनी आत्मा को ज्ञान आदि के समीप स्थापित किया है, जो परोपकारी अथवा पट जीवनिकाय का रक्षक है, और जो स्त्रीपशु और पण्डक से qणी सत्र साधुन या प्रमाणे उपदेश मा छ-"उवणीयतरस्स" त्यादि साथ-- 'उवणीयतरस्स-उपनीततरस्य' यो पोताना मामाने मान विगेरेनी Marals पहायाडी बाधा छ 'ताइणो-त्रायिन' तथा पातानी मने जीनन ४२ ३२ छ अर्थात पट्प नियनु २क्षण ४२ छ 'विविकमासण-विविक्तमासनम्' श्री, मस वरित स्थानने 'भजमा गस्स-भजमानस्य' सेवन ३२ता मेवा 'तस्स-तस्य' मावा मुनिनु सबजाये 'सामाइयमाह-सामायिकमाह' सामायि: शास्त्रि छ. 'ज-यत्' मटा माटे 'अप्पाण-आत्मान' यात्मामा 'भए ण दंसा-भये न दर्शयेत्' लय प्रहशित ના કરે જોઈએ. ૧૭ -सूत्राथ:જેણે પિતાના આત્માને જ્ઞાન આદિની સમીપે સ્થાપિત કર્યો છે. જે પરોપકારી છે એટલે કે છ જવનિકાયના રક્ષક છે, અને જે સ્ત્રી, પશુ અને પડક (નપુસક) થી રહિત
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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